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राष्ट्रवाद की परिभाषा नहीं बदली जा सकती, राष्ट्रवाद जो भी है वही रहेगा : खुर्शीद

पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का नाम लिये बगैर कहा कि खुद को देश समझने वाले कुछ लोगों को पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के संगम में डुबकी लगाने पर भी तकलीफ होने लगी है।

श्री खुर्शीद ने गंगा पांचालघाट तटवर्ती ग्राम सोताबहादुरपुर में रविवार को किसान पंचायत को संबोधित करते हुये कहा कि संगम में डुबकी वर्षों से लोग लगाते चले आ रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी इलाहाबाद संगम में डुबकी लगाई थी। आज प्रियंका गांधी ने संगम में डुबकी लगाई तो क्या समस्या बन गई।

उन्होने कहा कि दिखावे के लिये लोग कुछ भी दिखावा कहें कि भगवान की परिभाषा बदल गयी। मगर यह सत्य है कि भगवान की परिभाषा नहीं बदलेगी। इसी क्रम में राष्ट्रवाद की परिभाषा नहीं बदली जा सकती और राष्ट्रवाद जो भी है वही रहेगा।

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श्री खुर्शीद ने कहा कि देश का संविधान प्रत्येक धर्म का सम्मान करता है। किसी भी धर्म को अलग-अलग बांटने का काम नहीं करता,ऐसे में हम सभी एक दूसरे के धर्म का परस्पर सम्मान करते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री ने कहा कि हर एक का निजीकरण करके समस्या हल नहीं की जा सकती। निजीकरण इकाई विफल होती है तो इसका दुष्प्रभाव आम जनता पर पड़ेगा। जो देश और समाज के हित में नहीं होगा। निजी क्षेत्र की इकाईयों के सामने कोई न कोई समस्या रही होगी जिससे बड़ी-बड़ी इकाईयां घाटे में आ गयी। इनका कोई समाधान निकाला जाना चाहिए लेकिन हर एक का निजीकरण करके समस्या हल नहीं की जा सकती।

उन्होने कहा कि जहां कामदार निजी इकाईयां समाज सेवा भाव से जुडी हैं तो उनका निजीकरण होने से एक गम्भीर समस्या उत्पन्न हो सकती है ऐसे में केन्द्र सरकार निजीकरण मामले को लेकर कांग्रेस से गम्भीरतापूर्वक चर्चा करे तो कांग्रेस करने को तैयार है।

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श्री खुर्शीद ने कहा कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में संविधान ने सभी को अपने हकों को पाने के लिये अधिकार दिये हैं। किसानों का आन्दोलन सिर्फ एक मुद्दा नहीं रह गया बल्कि हम दिल ओ जान से उनका समर्थन कर रहे हैं ताकि किसानों को उनका संकट दूर हो सके। समर्थन मूल्य से अनाज जो मिलता है वो हमारें गरीबों तक राशन कोटा सिस्टम के माध्यम से पहुॅचता है। आज किसान अपने हकों के लिये आन्दोलन कर रहे हैं इसका मतलब है कि कहीं न कहीं कोई कमी है जिससे किसानों को आन्दोलन करना पड़ रहा है।

उन्होने कहा कि आपस में बंटने से लोकतंत्र मजबूत नहीं रह पायेगा, ऐसे में वोट डालते समय अपनी बड़ी जिम्मेदारी समझकर लोकतंत्र को मजबूत करने के लिये स्वयं संगठित होना पड़ेगा। लोकतंत्र में यदि व्यवस्था बिगड़ जायेगा तो सब कुछ बिगड़ जाता है। किसानों को उनकी फसल का समर्थन मूल्य मिलना चाहिए यदि उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिलता तो सरकार का समर्थन मूल्य होना चाहिए ताकि देश के गरीबाें को राशन व्यवस्था में अन्न मिलता रहे।

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