उत्तर प्रदेश के मेरठ कैंट इलाके स्थित काली पलटन मंदिर में आज भी वो कुआं मौजूद है जहां बाबा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को पानी पिलाया करते थे। 10 मई, 1857 को मेरठ से आजादी के पहले आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जो बाद में पूरे देश में फैल गई थी।
पिच्चासी सैनिकों के विद्रोह से जो चिंगारी निकली वो धीरे-धीरे ज्वाला बन गई। क्रांति की तैयारी बरसों से की जा रही थी। नाना साहब, अजीमुल्ला, झांसी की रानी, तांत्या टोपे, कुंवर जगजीत सिंह, मौलवी अहमद उल्ला शाह और बहादुर शाह जफर जैसे नेता क्रांति की भूमिका तैयार करने में अपने-अपने स्तर से लगे हुए थे। गाय और सुअर के मांस के चर्बी लगे कारतूस को चलाने से मना करने पर 85 सैनिकों ने विद्रोह कर दिया था। जिसके लिए उन पर कोर्ट मार्शल चलाया गया था। इसके बाद क्रांतिकारियों ने उग्र रूप अख्तियार किया था।
चर्बी से बने कारतूस चलाने से मना करने पर 85 सैनिकों के कोर्ट मार्शल की घटना ने क्रांति की तात्कालिक भूमिका तैयार कर दी थी। हिंदू और मुसलमान सैनिकों ने बगावत कर दी थी। कोर्ट मार्शल के साथ उनको 10 साल की सजा सुनाई गई थी। 10 मई को रविवार के दिन अंग्रेज अधिकारियों ने सुबह की जगह शाम को चर्च जाने का फैसला किया। इसका कारण गर्मी थी। कैंट एरिया से अंग्रेज अपने घरों से निकलकर सेंट जोंस चर्च पहुंचे। रविवार होने की वजह से अंग्रेजी सिपाही छुट्टी पर थे। कुछ सदर के इलाके में बाजार गए थे। शाम के लगभग साढ़े पांच बजे क्रांतिकारियों और भारतीय सैनिकों ने ब्रितानी सैनिकों और अधिकारियों पर हमला बोल दिया. सैनिक विद्रोह की शुरुआत के साथ सदर, लालकुर्ती, रजबन आदि क्षेत्र में 50 से अधिक अंग्रेजों की मौत हुई थी। मेरठ से शुरू हुई क्रांति पंजाब, राजस्थान, बिहार, असम, तमिलनाडु और केरल में फैलती चली गई। मेरठ में क्रांति स्थल पहुंचने पर लोग आदर के साथ इस जगह को प्रणाम करते हैं।
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इतिहासकार बताते हैं कि 10 मई की शाम साढ़े छह बजे सिपाहियों ने 85 सैनिकों को विक्टोरिया पार्क जेल से मुक्त करा लिया। देखते ही देखते फिरंगियों के खिलाफ विद्रोह के सुर तेजी से मुखर हुए। तीनों रेजीमेंटों के सिपाही विभिन्न टोलियों में बंटकर दिल्ली कूच कर गए। अगले दिन 11 मई को मेरठ की देसी पलटनें साज-सज्जा और जोश के साथ यमुना पुल पार करती देखी गईं थी।
क्रांति के उदगम स्थल पर आज भी दूर-दूर से आए लोगों का तांता लगता है। स्वतंत्रता सेनानियों की आंखों में आज भी वो क्रांतिकारी यादें जीवंत हैं।