दिल्ली में आवारा कुत्तों (Stray Dogs) को हटाने संबंधी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के आदेश का पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने कड़ा विरोध किया है। आदेश के खिलाफ बड़ी संख्या में कार्यकर्ता सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं। अब यह मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है, जहां जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की तीन सदस्यीय पीठ इसकी सुनवाई कर रही है।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क देते हुए कहा कि जैसे 100 सांपों में केवल 4 ही जहरीले होते हैं, लेकिन फिर भी लोग उन्हें घर पर नहीं रखते, उसी तरह कुत्तों को मारना जरूरी नहीं है, बल्कि उन्हें अलग करना चाहिए। उन्होंने बताया कि हर साल 35 लाख से अधिक लोगों को कुत्तों के काटने के मामले सामने आते हैं, यानी प्रतिदिन करीब 10 हजार मामले। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, रेबीज से हर साल 305 मौतें होती हैं, जिनमें ज्यादातर 15 साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं।
मेहता ने स्पष्ट किया कि किसी को जानवरों से नफरत नहीं है, लेकिन बच्चों की सुरक्षा के लिए कुत्तों को सार्वजनिक स्थानों से हटाकर अलग रखना आवश्यक है।
सुनवाई के अंत में कोर्ट ने अंतरिम रोक की प्रार्थना पर आदेश सुरक्षित रख लिया और हस्तक्षेप याचिका दाखिल करने वाले सभी पक्षों को हलफनामा और सबूत पेश करने के निर्देश दिए।
गौरतलब है कि इससे पहले जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने 11 अगस्त को दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और फरीदाबाद में सड़कों और सार्वजनिक स्थानों से सभी आवारा कुत्तों (Stray Dogs) को हटाकर उन्हें आश्रय स्थलों में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने इस प्रक्रिया को प्राथमिकता देने और बाधा डालने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी थी।