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रोजगार सृजन आधारित विकास की जरूरत लोकलुभावन व्यवस्था से बढ़ना होगा आगे

migrant labour lockdown

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नई दिल्ली। संतुलित और न्यायसंगत विकास एक उत्प्रेरक के समान है, जो किसी प्रगतिशील पारिस्थितिकी यानी लोकतंत्र और शासन के तहत अवसर का एक समृद्ध चक्र सृजित करता है। यह मांग पैदा करता है, नौकरियों और रोजगार के अवसरों को बढ़ाता है, उम्मीदों को प्रेरित करता है और उद्यमशीलता में विश्वास पैदा करते हुए निवेश को बढ़ावा देता है।

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संतुलित विकास को सामाजिक गतिशीलता, समान अवसरों, बेहतर स्वास्थ्य, समावेश, स्थिरता, कल्याण आदि के रूप में देखा जा सकता है। हमें यह समझना होगा कि आíथक विकास एक सतत प्रक्रिया है, घटना नहीं। अक्सर नीति निर्माता सुधार की योजनाएं बनाते समय इसे भूल जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अक्सर यह कहते हैं कि आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया के बारे में जारी किए गए अनेक दिशा-निर्देशों के परिणामस्वरूप विकासात्मक नीतियों का असर धरातल पर भी दिखना चाहिए।

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इतिहास बनाने में लगता है लंबा वक्त : यह सही है कि विकास किसी भी देश को गरीबी से बाहर निकलने में मदद करता है और अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करता है। यहां तक कि तेजी से और निरंतर विकास गरीबी को कम करने और गतिशीलता को सक्षम बनाने का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है। इस संबंध में किए गए एक हालिया अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया है कि आय में 10 प्रतिशत की वृद्धि गरीबी दर को लगभग 25 प्रतिशत तक कम कर देती है। यह व्यापक और समग्र विकास को गति प्रदान करती है तथा स्वास्थ्य व खुशहाली जैसे अन्य सतत विकास संकेतकों को भी बढ़ावा देती है।

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