लाइफ़स्टाइल डेस्क। बदलते मौसम में सर्दी, जुकाम, गले में दर्द, बुखार व एलर्जी की समस्याएं आम हो जाती हैं। पर इन समस्याओं से निपटने के लिए हमें अपना खास ख्याल रखने की जरूरत पड़ती है। आइए जानते हैं कि कान, नाक व गले में किस प्रकार की दिक्कतें हो सकती हैं और उस दौरान क्या सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है।
जब कान में हो समस्या
कानों में अधिकतर इंफेक्शन उनमें मौजूद वैक्स से ही होता है। अगर उसे सही तरीके से निकाला न जाए या किसी भी तरह की लापरवाही बरती जाए, तो वह काफी हानिकारक होता है। जरा सी भी असावधानी से फंगल इंफेक्शन या ब्लीडिंग की समस्या हो सकती है, जिसका सीधा असर कान के परदे पर पड़ता है। इसमें वे फट भी सकते हैं। कानों में जरा भी दिक्कत महसूस होने पर किसी विशेषज्ञ से तुरंत मिलना चाहिए।
लक्षणों पर गौर करें
- सुनाई कम देना या बिल्कुल ही सुनाई न देना।
- कानों में दर्द रहना
- चक्कर आना या कमजोरी महसूस होना
- लगातार खुजली होना
- चलने में समस्या होना या संतुलन बिगड़ना
- तेज बुखार रहना
- कानों से खून बहना
- कानों में सनसनाहट होना
बचाव एवं उपचार
हरसंभव कोशिश करनी चाहिए कि कानों में पानी न जाए। जरा सा भी पानी जाने पर उसे तुरंत साफ करना चाहिए। सेफ्टी पिन्स, माचिस की तीली व टूथ पिक आदि के इस्तेमाल से बचना चाहिए। ईयर बड्स के ज्यादा इस्तेमाल से भी ब्लीडिंग या फंगल इंफेक्शन हो सकता है। इससे बेहतर रहेगा अगर आप तौलिया गीला करके उससे ही कान साफ कर लें। वैक्स को सॉफ्ट करने के लिए ड्रॉप्स आते हैं। उनका प्रयोग भी किया जा सकता है।
ईयरफोन्स या हीयरिंग एड्स का अधिकतर प्रयोग करने से वैक्स के ब्लॉक होने की समस्या हो सकती है, जिससे वह स्वभाविक रूप से कान से बाहर नहीं निकल पाता। कान के अंदर ही उसके जमा होते रहने से इंफेक्शन बढ़ता है। जिनके कान के पर्दे में छेद हो, वे बारिश के मौसम में विशेष सावधानी बरतें। जरा भी पानी जाने से कान की तकलीफ बढ़ सकती है। टीवी व गाने कम आवाज पर सुनें। तेज पटाखे बजने पर या अत्यधिक शोर होने पर कान बंद कर लें। किसी भी तरह की परेशानी होने पर विशेषज्ञ से मिलें। आटोस्कोप से सही जांच होने पर बेहतर उपचार मिल सकेगा।