नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सिटीजनशिप एक्ट (Citizenship Act) की धारा 6A की वैधता पर अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने धारा 6A की वैधता को बरकरार रखा है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ का कहना था कि 6A उन लोगों को नागरिकता प्रदान करता है जो संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आते हैं और ठोस प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आते हैं।
CJI चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि असम अकॉर्ड अवैध शरणार्थियों की समस्या का राजनीतिक समाधान था और इसमें धारा 6A विधायी समाधान था। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इस अधिनियम को अन्य क्षेत्रों में भी लागू कर सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया, क्योंकि यह असम के लिए अद्वितीय था।
कोर्ट ने माना है कि 6A के तहत 25 मार्च, 1971 की कट ऑफ तारीख सही थी। आजादी के बाद पूर्वी पाकिस्तान से असम में भारत के बाकी क्षेत्रों की तुलना में प्रवास अधिक था। कोर्ट ने कहा कि धारा 6 ए न तो कम समावेशी है और न ही अधिक।
CJI ने फैसले में क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राज्यों को बाहरी आक्रमण से बचाना सरकार का कर्तव्य है, संविधान के अनुच्छेद 355 के कर्तव्य को अधिकार के रूप में पढ़ने से नागरिकों और अदालतों के पास आपातकालीन अधिकार आ जाएंगे जो विनाशकारी होगा। उन्होंने कहा कि किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की उपस्थिति का मतलब अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन नहीं है।याचिकाकर्ता को यह साबित करना होगा कि एक जातीय समूह दूसरे जातीय समूह की उपस्थिति के कारण अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा करने में सक्षम नहीं है।
CJI ने कहा कि रजिस्ट्रेशन भारत में नागरिकता प्रदान करने का वास्तविक मॉडल नहीं है और धारा 6ए को केवल इसलिए असंवैधानिक नहीं माना जा सकता क्योंकि इसमें पंजीकरण की प्रक्रिया निर्धारित नहीं की गई है, इसलिए मैं भी इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि धारा 6ए वैध है।
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जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस एमएम सुंदरेश ने अपने फैसले में धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को भी बरकरार रखा है। उन्होंने देरी और न्यायिक समीक्षा पर आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि हम किसी को अपना पड़ोसी चुनने की अनुमति नहीं दे सकते और यह भाईचारे के सिद्धांत के खिलाफ है।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि हमने यह दलील भी खारिज कर दी है कि 6A में स्पष्ट मनमानी है, 1966 से पहले और 1966 के बाद और 1971 से पहले आए प्रवासियों के लिए स्पष्ट रूप से परिभाषित शर्तें हैं। इस कानून का तर्क मनमाना या अनुचित नहीं है। उन्होंने कहा कि धारा 6A नागरिकता अधिनियम की धारा 9 का खंडन नहीं करती है।