गोरखपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा कि परिवार असेंबल की गयी इकाई नहीं है, यह संरचना प्रकृति प्रदत्त है। इसलिये हमारी जिम्मेदारी उनकी देखभाल करने की भी है। आज हम इसी के चिंतन के लिए यहां बैठे है। हमारे समाज की इकाई कुटुम्ब है, व्यक्ति नहीं। पाश्चात्य देशों में व्यक्ति को इकाई मानते हैं, जबकि हमारे वहां हम व्यक्ति तो है लेकिन एक अकेले नहीं है।
भागवत यहां तारामंडल स्थित गुरु गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में कुटुम्ब प्रबोधन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कुटुम्ब के लिए छह मंत्र देते हुए कहा कि भाषा, भोजन, भजन, भ्रमण, भूषा और भवन के जरिये अपनी जड़ों से जुड़े रहें। मेरा परिवार स्वस्थ रहे, सुखी रहे, इसके साथ हमें समाज के भी स्वस्थ व सुखी रखने की चिंता करनी होगी।
सप्ताह में हर परिवार में करें कुटुम्ब प्रबोधन
उन्होंने कहा कि यहां पर कुटुम्ब प्रबोधन हो रहा है। इसी तरह सप्ताह में सभी परिवार कुटुंब प्रबोधन करें। इसमें एक दिन परिवार के सभी लोग एक साथ भोजन ग्रहण करें। इसमें अपनी परंपराओं, रीति रिवाजों की जानकारी दें। फिर आपस में चर्चा करें और एक मत बनाएं और उस पर कार्य करें।
हम वृतस्थ हैं, व्रत अकेले का नहीं होता
मोहन भागवत ने कार्यकर्ताओं व उनके परिवारीजनों को सम्बोधित करते हुए कहा कि हम सब लोग संघ के कार्यकर्ता के घर से हैं। इसलिए हम व्रतस्थ हैं। यह व्रत परिवार के किसी अकेले व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे परिवार का है। संघ अपनी कुलरीति है। संघ समाज को बनाने का कार्य है। इसलिए धर्म भी है। धर्म हमें मिलकर जीने का तरीका सिखाता है। परस्पर संघर्ष न हो इसके लिए हम अपना हित साधें, लेकिन दूसरे का अहित न हो इसकी चिंता भी करें। यही सनातन धर्म है। यही मानव धर्म है। यही आज हिन्दू धर्म है । सम्पूर्ण विश्व को तारण देने वाला धर्म है। इसके लिए कमाई भी देनी पड़ती है।
मोहन भागवत ने गुरु गोरक्षनाथ के किए दर्शन, विधि-विधान से की पूजा अर्चना
मणिपुर का दिया उदाहरण
उन्होंने मणिपुर का उदाहरण देते हुए कहा कि हमें अपना परम्परागत वेश-भूषा पहनना चाहिए। कम से कम मंगल प्रसंग व अवसरों पर तो पहनना ही चाहिए। हम क्या हैं, हमारे माता-पिता कहां से आए, इसकी जानकारी रखनी चाहिए। हमको इसकी भी चिंता करनी चाहिए कि हम अपने पूर्वजों की रीति का पालन कर रहे हैं या नहीं? हमें पूरे परिवार के साथ बैठकर विचार करना चाहिए। बच्चों के संग खुले दिल से बात करना चाहिए। मैं समाज के लिए क्या करता हूं, यह भी हमें सोचना चाहिए।
संघ के बारे में की चर्चा
संघ के बारे में चर्चा करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि संघ पर दो बार प्रतिबंध लगा। पर किसी स्वयंसेवक ने माफी नहीं मांगी। क्योंकि स्वयंसेवकों के साथ परिवार खड़ा रहा। परिवार सदा अड़ा रहा। इसलिए संघ का काम निरन्तर चल रहा है। हम स्वयंसेवकों के परिवारीजनों को संघ जानना चाहिए। संघ के गम्भीर कार्यों का मनन करना चाहिये। हम इतने सौभाग्यशाली हैं, जो इस कार्य में लगे हैं।