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इस जिले में है दुनिया का सबसे पुराना घड़ा, 2000 लीटर पानी की है क्षमता

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कन्नौज। क्या टैंक के बराबर हो सकता है मिट्टी का घड़ा(Pitcher) । सुनकर सोच में पड़ गए, लेकिन यह सच है। दुनिया का सबसे बड़ा और पुराना घड़ा (Pitcher) उत्तर प्रदेश के जिले कन्नौज (Kannauj) में रखा है। ‘खुशबू’ के लिए विख्यात इत्रनगरी के म्यूजियम में संरक्षित इस घड़े में दो हजार लीटर पानी आ सकता है। करीब दो हजार वर्ष पूर्व कुषाण वंश का यह घड़ा 40 साल पहले शहर के शेखपुरा मोहल्ले में खुदाई के दौरान मिला था।

सम्राट हर्षवर्धन और राजा जयचंद का साम्राज्य रहे इस जिले का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। यहां समय-समय पर हुई खुदाई के दौरान कई ऐसी नायाब चीजें निकली हैं। पहली से तीसरी सदी के बीच के कुषाण वंश के दौरान का सबसे बड़ा यह घड़ा उनमें से ही एक है। नव निर्मित म्यूजियम में कांच के घेरे में सहेजे गए इस प्राचीन धरोहर घड़े को देख लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं।

1500 ईसा पूर्व के भी बर्तन हैं

करीब दो हजार साल पहले कनिष्क के शासन के समय छोटे-बड़े 40 से ज्यादा बर्तन ही नहीं उसके पहले और बाद के गुप्त काल के दौर में इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के बर्तन भी यहां खुदाई के दौरान मिले हैं। यहां कुषाण वंश से भी पहले यानी 1500 ईसा पूर्व के बर्तनों के अवशेष मिले हैं। पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि कन्नौज में पेंटेड ग्रे वेयर और नॉर्दर्न ब्लैक पॉलिश्ड वेयर कल्चर था। जिससे जाहिर है यहां 3500 साल पूर्व भी मानव सभ्यता मौजूद थी।

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तब पानी सहेजने के लिए ऐसे ही घड़े होते थे

इतिहास के जानकार एवं राजकीय म्यूजियम के अध्यक्ष दीपक कुमार बताते हैं कि अब तक कहीं भी इससे बड़े और पुराने घड़े होने का सुबूत नहीं मिलता है। काफी शोध के बाद ही इसकी उम्र का आंकलन हो सका था। यह करीब दो हजार साल पहले कुषाण वंश के दौरान 78 ई. से 230 ई. के बीच का है। तब गंगा शहर के करीब गुजरती थीं। तब इसी तरह के घड़ों में पानी सहेजने की परंपरा थी।

दुर्लभ धरोहरों से पटा है कन्नौज का म्यूजियम

कन्नौज में पिछले पांच दशक से भी ज्यादा समय से पुरातत्व विभाग की खुदाई में कई नायाब चीजें सामने आई हैं। फिर चाहे टेराकोटा की मूर्तियां हों या एक हजार वर्ष से भी ज्यादा पुरानी मुद्राएं। भगवान शिव की कई अलग-अलग मुद्राओं की प्राचीन मूर्तियां भी यहां से निकलती रही हैं। यहां अलग-अलग सदी के शिलालेख, मूर्तियां, सिक्के, बर्तन, पत्थर भी निकलते रहे हैं। हिन्दु, जैन और बौद्ध धर्म से जुड़ी कई विरासत यहां सहेज कर रखी गई हैं। सभी की उम्र का आकलन कार्बन डेटिंग और थर्मोल्यूमिनिसेंस विधि से किया जा चुका है।

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बेल्जियम प्रदर्शनी में गई थी यहां की दुर्लभ मूर्तियां

कन्नौज में खुदाई में निकलीं मूर्तियों ने देश की शान विदेश में भी बढ़ाई है। इसमें 1100 साल पहले 9वीं शताब्दी में प्रतिहार वंश के दौर की सप्तमातृका मूर्ति में चार देवियों वैष्णवी, बाराही, इंद्राणी और चामूंडा देवी हैं। अर्धनारीश्वर की मूर्ति भी है। इसमें एक ओर शिव-पार्वती और दूसरी ओर बौद्ध देवी तारा की मूर्ति है। इसे भी प्रतिहार वंश का बताया जाता है। दोनों ही बेल्जियम में लगी अंतराष्ट्रीय प्रदर्शनी में भारत की ओर से भेजी गई थीं। यूपी के पर्यटन कैलेंडर में भी यह मूर्तियां जगह पा चुकी हैं।

उद्घाटन हो तो दुनिया देखे कन्नौज की विरासत

कन्नौज के नवनिर्मित म्यूजियम का अब तक औपचारिक उद्घाटन नहीं हो सका है। इसीलिए कम ही लोग यहां पहुंच पाते हैं, हालांकि यहां देश-विदेश से रिसर्चर आते रहते हैं। सन् 2016 में अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री रहते हुए करीब आठ करोड़ की लागत से इसका जीर्णोद्धार करवाया था। पांच साल पहले यह म्यूजियम तैयार हो चुका है, पर औपचारिक उद्घाटन के लिए शासन से पत्राचार हो रहा है।

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यह भी जानें

पुरातत्व खुदाई से निकले मिट्टी के बर्तनों की सही उम्र पता लगाने के लिए अब थर्मोल्यूमिनिसेंस डेटिंग विधि अपनाई जाती है। पुरातत्व चीजों की उम्र जानने के लिए कार्बन डेटिंग विधि प्रयोग होती थी। अब कार्बन डेटिंग विधि का उपयोग जैविक चीजों में होता है, जबकि थर्मोल्यूमिनिसेंस विधि का उपयोग पुरातत्व खुदाई में निकले मिट्टी के बर्तनों के लिए होता है।

घड़े की खासियतें

– 2000 लीटर पानी रखने की क्षमता

– 40 साल पहले खुदाई में मिला था

– 5.4 फीट है इस घड़े की ऊंचाई

– 4.5 फीट है इस घड़े की चौड़ाई

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