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श्री दुर्गासप्तशती के पाठ से होता है लाभ, ज्योतिषाचार्य से जानें किस प्रकार करना चाहिए पाठ

प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥

‘शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली देवि! हम पर प्रसन्न हो। सम्पूर्ण जगत की माता! प्रसन्न हो। विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो। देवी! तुम्हीं चराचर जगत की अधीश्वरी हो।’

सनातन धर्म में श्रीदुर्गासप्तशती विशिष्ट प्रतिष्ठा है। सकाम भक्ति करने वाले जहां इसके पाठ से मनोकामना पूरी करते हैं, वहीं निष्काम भक्त इनके सहारे परम दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

सप्तशती में एक से बढ़कर एक मंत्र हैं, जो विधि-विधान से जपे जाएं, तो शीघ्रता से लाभ प्रदान करते हैं। ज्योतिष के हिसाब से देखें, तो मिथुन और मकर लग्न वालों को नवरात्रों में इनका पाठ करना चाहिए। जैसे सेहत हेतुमंत्र है-

एक दूसरे मंत्र में आरोग्य और सौभाग्य दोनों की प्राप्ति होती है- देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥ यह मंत्र रोजगार के लिए भी बहुत लाभप्रद है।

तीन देवियों- महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती को प्रसन्न करना है, तो सप्तशती का पाठ गणेश पूजन के बाद करना चाहिए। सेहत ठीक न होने पर किसी विद्वान से भी यह करवाना उचित होगा।

जब भी सप्तशती का पाठ करें, तो ध्यान रहे कि पाठ संख्या विषम अर्थात एक, तीन, पांच आदि होनी चाहिए। विद्वानों से कराना है, तो एक, तीन या पांच विद्वान होने चाहिए।

इस बार केवल आठ नवरात्र हैं। कम नवरात्र अशुभ माना जाता है। 7 से 14 अक्टूबर होने वाले नवरात्र में अपने घर में रहने वाली मां, सास आदि की सेवा विशेष फल प्रदान करेगी।

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