पितृपक्ष (Pitru Paksha) में अपने वंशजों के आह्वान पर देव-पितर धरा पर आते हैं। श्राद्ध-तर्पण से संतुष्ट होने के बाद सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देकर अपने धाम को चले जाते हैं। ऐसे में श्राद्ध के दिनों में भू-भवन, धन-संपत्ति की खरीदी करना शुभ होता है। श्राद्ध पक्ष में भ्रांतियों का भी तर्पण करना चाहिए।
ज्योतिषाचार्य पंडित वासुदेव शर्मा का कहना है कि गोस्वामी तुलसीदास ने पितृ पक्ष को पितरों का महोत्सव कहा है। उन्हें स्मरण करने और श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध व तर्पण करने का काल है। पौराणिक ग्रंथों में भी बताया गया है कि तर्पण ऋषियों का नैत्यिक व शुभ कार्य था। अतः पितृ पक्ष (Pitru Paksha) में खरीदारी को लेकर कोई निषेध शास्त्र-पुराणों में नहीं बताया गया है।
पितृ पक्ष (Pitru Paksha) में यह भ्रांति है कि श्राद्ध के दिनों में कोई भी नया काम या खरीदारी नहीं की जाती, जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। राधाकृष्ण मंदिर के पुजारी पंडित रमेश तिवारी की मानें तो हिंदू धर्म में जिस प्रकार से देवों की पूजा आराधना के लिए अलग-अलग माह समर्पित हैं। उसी तरह आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में देव तुल्य पितरों की पूजा की जाती है। खरीदारी से पितरों की आत्मा प्रसन्न होती है।
पुण्य कार्य करने का समय
आचार्य सतीश दूदाधारी मठ के आचार्य सतीश पांडेय कहते हैं कि धार्मिक मान्यता है कि ज्योतिर्विद इस काल को पितरों की आराधना का पुण्य काल बताते हैं। ऐसे में यह काल पुण्य कार्य करने का होता है। घर में खरीदारी करने से पितर प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध के दिनों में कोई नया चीज नहीं खरीदना पर कभी पाबंदी नहीं रही।
शास्त्रों में कहीं भी इसका जिक्र नहीं
पं.रामेश्वर पौराणिक कथा वाचक पंडित रामेश्वर दुबे कहते हैं कि पितरों की श्रद्धा के समय में शुभ-अशुभ का हवाला देते हुए खरीद-बिक्री की पाबंदी की बात हम सुनते रहते हैं लेकिन शास्त्रों में कहीं भी इसका जिक्र नहीं है। पितरों को देव कोटि तुल्य माना जाता है। मांगलिक कार्य में सबसे पहले पितरों को आमंत्रित किया जाता है।