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ये है मून मिशन चंद्रयान-3 के ‘हीरो’, जिनकी मेहनत से भारत ने रचा इतिहास

Chandrayaan-3

Chandrayaan-3

Chandrayaan-3  आज चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैडिंग कर इतिहास रच दिया। अमेरिका, रूस और चीन के बाद ऐसा करने वाला चौथा देश बन गया। नासा से लेकर यूरोपियन स्पेस एजेंसी की नजरें इसरो के Chandrayaan-3  मिशन पर थीं। इस मिशन के पीछे है सालों से काम करने वाली इसरो की टीम। वो टीम जिसके कारण चंद्रयान मिशन-3 को लॉन्च किया गया। इसरो का तीसरा मून मिशन पिछले 2 मिशन से काफी अलग है। इसरो चीफ डॉ. एस। सोमनाथ के नेतृत्व में काम करने वाली टीम ने मिशन को ऐसे पड़ाव तक पहुंचाया जिस पर दुनियाभर की नजर थी।

Chandrayaan-3  की तैयारी में 3 साल 9 महीने 14 दिन लगे हैं। इसके पीछे है दिग्गजों की टीम, जिनके कारण भारत आज इतिहास रचने को तैयार है। जानिए, इस मिशन के पीछे कौन-कौन है।

ISRO चीफ एस सोमनाथ (S Somnath)

डॉ. एस सोमनाथ: Chandrayaan-3  के बाहुबली रॉकेट को डिजाइन किया

डॉ. एस सोमनाथ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष होने के साथ इस मिशन को लीड भी कर रहे हैं। उन्होंने इस मिशन के उस बाहुबली रॉकेट के लॉन्च व्हीकल 3 को डिजाइन किया गया है जिसकी मदद से Chandrayaan-3  को लॉन्च किया गया था। भारत का यह तीसरा मून मिशन है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु से पढ़ाई करने वाले डॉ. एस सोमनाथ को इस मिशन की जिम्मेदारी पिछले साल जनवरी में मिली। इनके नेतृत्व में यह मिशन सफलता के पड़ाव को पार करते हुए चांद तक पहुंचने की तैयारी में है। इसरो से पहले डॉ. सोमनाथ विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र और तरण प्रणोदन प्रणाली केंद्र के डायरेक्टर भी रहे हैं। इसरो के ज्यादातर मिशन में इस्तेमाल हुए रॉकेट में तकनीक को शामिल करने का काम इन्हीं दोनों संस्थानों ने किया है।

Chandrayaan-3 के बाद डॉ. एस सोमनाथ के हाथों में दो बड़े मिशन की कमान होगी। इसमें आदित्य-एल1 और गगनयान शामिल है।

पी वीरमुथुवेल (P Veeramuthuvel)

पी वीरमुथुवेल: चांद पर कई तरह की खोज के लिए जाना गया

पी वीरमुथुवेल बतौर प्रोजेक्टर डायरेक्टर इस मिशन की कमान संभाल रहे हैं। उन्हें 2019 में मिशन चंद्रयान की जिम्मेदारी दी गई थी। पी वीरमुथुवेल इससे पहले इसरो के हेड ऑफिस में स्पेस इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोग्राम कार्यालय में उप निदेशक रहे हैं। इसरो के दूसरे मून मिशन में भी इन्होंने अहम जिम्मेदारी निभाई थी।

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तमिलनाडु के विल्लुपुरम के में रहने वाले पी वीरामुथुवेल ने IIT मद्रास से ग्रेजुएशन किया। इन्हें चांद पर चंद्रयान 2 फ़्लोटसम और जेट्सम खोजने के लिए भी जाना गया। पी। वीरामुथुवेल को वीरा के नाम से भी जाना जाता है।

एस उन्नीकृष्णन नायर (S Unnikrishnan Nair)

एस उन्नीकृष्णन नायर: रॉकेट के निर्माण की जिम्मेदारी संभाली

विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के डायेरक्टर और एयरोस्पेस इंजीनियर डॉ. उन्नीकृष्णन के पास Chandrayaan-3  से जुड़ी कई अहम जिम्मेदारी रही हैं। इस मिशन के लिए रॉकेट के डेवलपमेंट से लेकर निर्माण की जिम्मेदारी निभाने वाले विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के डायरेक्टर हैं। इनके नेतृत्व में केरल स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) मार्क-III को तैयार किया गया।

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इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से पढ़ाई करने वाले डॉ. उन्नीकृष्णन ने चंद्रयान-2 की असफलता के बाद इनकी कमियों को समझना और नए मिशन की सफलता के लिए रणनीति तैयार करने का काम इन्होंने किया।

एम शंकरन (M Sankaran)

एम शंकरन: इसरो के सैटेलाइट को डिजाइन और तैयार करने की जिम्मेदारी

एम शंकरन यू आर राव सैटेलाइट सेंटर (URSC) के डायरेक्टर हैं। इस संस्थान के पास इसरो के सैटेलाइट को तैयार और डिजाइन करने की जिम्मेदारी है। शंकरन के नेतृत्व में टीम सैटेलाइट के कम्युनिकेशन, नेविगेशन, रिमोट वर्किंग, मौसम की भविष्यवाणी और ग्रहों की खोज करने की जिम्मेदारी निभा रही है।

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एम शंकरन 1986 में भारतीदासन विश्वविद्यालय, तिरुचिरापल्ली से फिजिक्स में मास्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद वो इसरो के सैटेलाइट सेंटर से जुड़े जिसे URSC के नाम से जाना जाता है। उन्हें साल 2017 इसरो के प्रदर्शन उत्कृष्टता पुरस्कार और 2017 और 2018 में इसरो टीम उत्कृष्टता पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

डॉ. के कल्पना (K Kalpana)

डॉ. के कल्पना: कोविड में भी मून मिशन पर डटी रहीं

डॉ. के कल्पना Chandrayaan-3  मिशन की डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं। वह लम्बे समय से इसरो के मून मिशन पर काम कर रही हैं। कोविड महामारी के दौरान भी उन्होंने इस मिशन पर काम करना जारी रखा। वो इस प्रोजेक्ट पर पिछले 4 साल से काम कर रही हैं। डॉ. के कल्पना वर्तमान में URSC की डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं।

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