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प्राचीन भारत में इस प्रकार होता था दिवाली का आयोजन

दिवाली Diwali

दिवाली

लाइफस्टाइल डेस्क। पिछले हजारों वर्षों में भारतभूमि पर अनेक महान शासकों ने राज्य किया है। दिवाली एक ऐसा उत्सव है, जिसे रामायणकाल से मनाया जा रहा है। मगध साम्राज्य, मुगल साम्राज्य, मराठा साम्राज्य सभी ने कालांतर में इस पर्व को बहुत उत्साह से मनाया है। चूंकि भारतवर्ष पर किसी भी एक विशेष साम्राज्य का 400 से अधिक वर्ष तक आधिपत्य नहीं रहा है, और भारत के लम्बे इतिहास में कई सारे साम्राज्यों ने इस देवभूमि पर राज्य किया है।

सभी साम्राज्यों की अपनी शासनप्रणाली हुआ करती थी, जो कि उसे अन्य साम्राज्यों से विशिष्ट बनाती थी। उत्तर का मौर्य साम्राज्य हो या दक्षिण का विजयनगर साम्राज्य, भारतवासी हमेशा से उत्सवप्रेमी रहे हैं। अगली स्लाइड्स के माध्यम से जानिए भारतवर्ष के विभिन्न साम्राज्यों में किस तरह से मनाया जाता था दीपोत्सव-

मगध साम्राज्य में जैन दिवाली की प्रधानता रही है क्योंकि 5वीं शताब्दी के पूर्व जैन धर्म अस्तित्व में आ चुका था एवं आगे चलकर चंद्रगुप्त मौर्य ने भी इसका खूब प्रचार-प्रसार किया है इसलिए राज्य में ‘दिपालिका’ का आयोजन होता था। आठवीं शताब्दी में आचार्य जिनसेन विरचित ग्रंथ हरिवंशपुराण के अनुसार जो लोग जैन धर्म का अनुसरण कर चुके थे वे दिवाली पर महावीर का ध्यान करते थे क्योंकि यह माना जाता है कि इसी दिन महावीर स्वामी को निर्वाण प्राप्त हुआ था। हालांकि इसको लेकर दिगम्बर और श्वेताम्बर पंथ में विरोधाभास है। श्वेताम्बर पंथ के अनुयायी दिवाली पर तीन दिवस का उपवास करते थे।

आकाशभैरवकल्प के अनुसार, विजयनगर साम्राज्य में कृष्णदेवराय के शासन में दिवाली का वैभव देखते ही बनता था। देवराय-1 के शासनकाल में प्रजा के प्रमुख लोगों ने दिवाली के सुअवसर पर विनायकदेव और नारायणदेव के मंदिरों को अतिरिक्त जमीन दान की थी। सन् 1520 में दीपाराधना के लिए गांव कृष्णपुर को कर मुक्त कर दिया गया था। सालुव नरसिम्हा के शासनकाल में राज्य तिरुमलई को प्रकाशोत्सव के लिए महामंडलेश्वर द्वारा 500 पण दिए गए थे। दिवाली पर प्रजा के मनोरंजन के लिए लंबे समय तक विजयनगर साम्राज्य में बैल युद्द, नृत्य, संगीत आदि का आयोजन होता था।

जहांगीरनामा में मुगलकालीन दिवाली के बारे में जहांगीर कुछ इस प्रकार लिखते हैं कि 16वीं शताब्दी में इसे वैश्यों का उत्सव माना जाता था चूंकि इसका संबंध धनलाभ आदि से हैं। वैश्य दिवाली पर अपने पुराने बहीखातों को हटाकर नये बहीखातों का पूजन करते थे। दिवाली के अवसर पर मुगलों के शाही दरबार में अक्ष-क्रीड़ा का भी आयोजन होता था। लाल किले के भीतर रंग महल को जश्न-ए-चिरागां के लिए सजाया जाता था। मुगलकालीन तस्वीरों में आतिशबाजी के चित्र भी नजर आते हैं।

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