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मनुष्य के अंदर कूट कूट कर नहीं भरी होनी चाहिए ये एक चीज

लाइफ़स्टाइल डेस्क। आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार आज के समय में भी प्रासांगिक हैं। अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में सफलता चाहता है तो उसे इन विचारों को जीवन में उतारना होगा। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार ईमानदारी पर आधारित है।

“किसी भी व्यक्ति को बहुत ज्यादा ईमानदार नहीं होना चाहिए। जंगल में सीधे तने वाले पेड़ ही सबसे पहले काटे जाते हैं। बहुत ज्यादा ईमानदार व्यक्ति को ही सबसे ज्यादा कष्ट उठाने पड़ते हैं।” आचार्य चाणक्य

आचार्य चाणक्य के इस कथन का मतलब ईमानदारी से है। आचार्य चाणक्य का कहना है कि किसी भी व्यक्ति को ईमानदार नहीं होना चाहिए। जंगल में सीधे तने वाले पेड़ ही सबसे पहले काटे जाते हैं। बहुत ज्यादा ईमानदार व्यक्ति को ही सबसे ज्यादा कष्ट उठाने पड़ते हैं।

आचार्य चाणक्य के कथन का अर्थ आप परिवार और नौकरी दोनों से ही जोड़कर देख सकते हैं। ईमानदार होना जरूरी है लेकिन हद से ज्यादा कोई भी चीज हानिकारक होती है। ठीक इसी प्रकार ईमानदारी भी है। अगर कोई व्यक्ति बहुत ज्यादा ईमानदार है तो सबसे पहले दुष्परिणाम उसे ही भुगतने पड़ते हैं।

उदाहरण के तौर पर इस कथन को अब नौकरी से जोड़कर देखिए। कई बार आपके बॉस गलत होते हैं आपको ये बात पता भी होता है चूकि वो आपके सीनियर हैं इस लिहाज से आपको कई बार अपनी ईमानदारी को ताक पर रखना ही ठीक है। उस वक्त ईमानदारी आपकी नौकरी पर भी भारी पड़ सकती है। इसी ईमानदारी को अब परिवार से जोड़कर देखिए। जिस तरह हाथ की सभी उंगलियां एक समान नहीं होती ठीक उसी प्रकार घर के सभी लोग स्वभाव, विचार से अलग-अलग होते हैं।

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