धर्म डेस्क। दिवाली का त्योहार धनतेरस के दिन से ही आरंभ हो जाता है। धनतेरस से ही पूजा-पाठ और दीप जलाने की परंपरा शुरु हो जाती है। दिवाली शुभता और सुख-समृद्धि का त्योहार है। हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या के दिन दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। इस वर्ष दिवाली का पर्व 14 नवंबर को मनाया जाएगा। दिवाली पर मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। इससे पूरे वर्ष घर में धन-धान्य की कमी नहीं रहती है। दिवाली पर कुछ मंगल कार्य अवश्य करने चाहिए।
दिवाली पर दरवाजें या फिर आंगन के बीचों-बीच फूलो और रंगों से रंगोली बनाने की परंपरा बहुत पहले से चली आ रही है। रंगोली या मांडना का ‘चौंसठ कलाओं’ में स्थान माना जाता है। इसलिए हर उत्सव एवं मांगलिक अवसरों घर-आंगन को रंगोली से सजाया जाता है। मां लक्ष्मी के स्वागत में आप भी अपने घर पर रंगोली जरुर बनाएं।
आज के समय में मिट्टी के दियों की जगह बाजार की लाइटों और मोमबत्तियों ने ले ली है। लेकिन दिवाली पर मिट्टी के बने हुए पारंपारिक दीपक ही जलाना शुभ रहता है। क्योंकि इसमें मिट्टी, आकाश, जल, अग्नि और वायु सभी का मिश्रण होता है। इसलिए अनुष्ठान में मिट्टी के दीपक जलाने बहुत अच्छा रहता है। मिट्टी के दीपक में तेल डालकर जलाने का महत्व वैज्ञानिक तौर पर भी माना जाता है।
हिंदू धर्म में हर शुभ कार्य में मंगल कलश रखने की परंपरा है। इसलिए दिवाली पर भी एक कलश में जल भरकर उसमें कुछ आम के पत्ते लगाकर रखना चाहिए। नारियल के मुख पर नारियल भी लगाना चाहिए। कलश पर रोली से स्वस्तिक का चिन्ह बनाएं और कलश की मुख पर मौली बांधनी चाहिए।
मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु दोनों को ही शंख प्रिय है। मान्यता है कि जहां पर शंख रखा होता है मां लक्ष्मी वास करती हैं साथ ही विष्णु जी भी प्रसन्न होते हैं। शंख बजाने से हर जगह सकारात्मकता का संचार हो जाता है। इसलिए दिवाली पर अपने घर में शंख बजाएं।
स्वास्तिक का चिह्न बहुत ही शुभ माना जाता है। हर मांगलिक कार्य में स्वास्तिक का चिह्न बनाया जाता है। इसे स्वयं भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है। इसलिॆए दिवाली पर घर की दिवारों दरवाजे के साथ कलश पर स्वास्तिक का चिह्न अवश्य बनाएं। मां लक्ष्मी के समक्ष भी स्वास्ति का चिह्न बनाना चाहिए। व्यापार से संबंधित चीजों, शिक्षा सामाग्री और बहीखाते पर भी स्वास्तिक का चिह्न बनाकर पूजा की जाती है।