रामपुर(मुजाहिद खाँ)। धर्म की राजनीति को लेकर भले ही राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में रहती हों।और इन मुद्दों पर सत्ता पर भी काबिज़ होती हों लेकिन भारत वर्ष में एक दूसरे के धर्म से जुड़े त्यौहार हों या आपसी सम्बन्ध इन सभी परम्पराओं के लिए सदियों से एक दूसरे के साथ खड़े हैं और यही सब राष्ट्रीय सद्भावना की एक मिसाल पेश करती हैं।
इसी तरह बुराई पर अच्छाई की जीत पर मनाये जाने वाले हिन्दू धर्म के त्यौहार दशहरा जिसको लेकर रामलीला के आयोजन के साथ अंतिम दिन रावण के पुतले का दहन किया जाता है। लेकिन इसमें मुस्लिम समाज का भी शामिल होना राष्ट्रीय सद्भावना की मिसाल पेश करता है। चाहे रामलीला मंचन में अलग अलग किरदार अदा करना हो या रावण के पुतले तैयार करना हो।
इसी तरह रामपुर में एक मुस्लिम परिवार पीढ़ियों से दशहरे पर रावण के पुतले बनाकर अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहा है।
जिसको लेकर पुतले बनाने का काम करने वाले मंज़ूर खान ने बताया कि पिछले 2 सालों से रावण के पुतले बनाने के काम को लेकर काफी परेशानी में हैं क्योंकि पिछले साल भी लॉक डाउन की वजह से काम नहीं मिल सका था। इस बार भी बड़े रावण के ऑर्डर थे लेकिन परमिशन नहीं मिली जिसकी वजह से छोटे करने पड़े जिसके लिए कमेटियों ने पुतले छोटे करने को करने को कहा जिस पर हमने अपनी परेशानी भी बताई छोटे पुतले अब कैसे बनाएंगे। कहा पिछले 2 महीने से काम कर रहे हैं किराए का गोदाम लेकर और लेबर लगाकर।
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कहा कि अब इस काम में उलझट्टे बहुत ज्यादा हो गए और रिस्क भी ज्यादा है, काम करने को दिल नहीं चाहता। इस बार 35 से 40 फिट के पुतले बनाए हैं इससे ज्यादा बड़े नहीं बनाए। पहले 60 फीट 70 फीट और 75 फीट का भी पुतला होता था लेकिन अब के लोगों ने नहीं लिया और 20 फीट 25 फीट के भी बनाए है। इस बार भी ज्यादा पुतले नहीं बन सके 10-12 पुतले बनाए हैं कुछ रामलीलाओं की परमिशन न मिलने से ऑर्डर कैंसिल हो गए।
पुतले रुद्रपुर उत्तराखंड और कई जिलों तक जाते हैं।कहा 40-45 साल मुझे काम करते हो गए और यह काम बाप और दादा भी करते चले आ रहे हैं इस काम को करते हुए सल्तनत चली आ रही है। कहा मैं मुस्लिम परिवार से हूं लेकिन कोई सहायता नहीं मिल पा रही है।
काम पिट रहा दशहरा पर काम नहीं मिल रहा है तो कम से कम गवर्नमेंट को कोई सहायता करनी चाहिए। लॉकडाउन में कोरोना की वजह से हमारा धंधा पिट गया। यही रोजी रोटी है तो कुछ न कुछ मदद करनी चाहिए थी कोई नहीं मिली इसलिए मेहनत मजदूरी करके खाना पड़ रहा है।
पुतले तैयार करने के लिए 3 महीने पहले जुलाई से काम शुरू करना पड़ता है और दशहरे तक पूरा कर लेते हैं जब तक काम नहीं निपटता है करते ही रहते हैं। कहा इस काम में चार मेरे लड़के तीन लड़कियां के अलावा लेबर लगती है और रिक्शा की लेबर अलग है जो पुतलों को लेकर जाती है अब इस काम में बस मेहनत मजदूरी पड़ रही है थक चुके हैं और गवर्नमेंट कोई भी सहायता नहीं करती है।