भारत की लाइफलाइन रेलवे को कहा जाता रहा है। दुनिया में पटरियों का सबसे बड़ा जाल भारतीय रेलवे का माना जाता है, जो तमाम राज्यों के दूरस्थ इलाकों तक फैला है। दूरदराज तक रेलवे के कई स्टेशनों के बीच एक स्टेशन झारखंड में है, जिसकी कहानी बेहद दिलचस्प है।
अंग्रेज़ों के ज़माने में बने दिलवा रेलवे स्टेशन की सबसे खास बात यह है कि यह अब दो राज्यों के एकदम बीच में है। यानी इस स्टेशन का एक ट्रैक झारखंड राज्य में है, तो दूसरा बिहार की सीमा में। जी हां, दिलवा वो स्टेशन है, जहां से झारखंड और बिहार की सीमा एक दूसरे से मुलाकात करती है और बिछ़ड भी जाती है। इस विचित्रता से एक आकर्षण पैदा होता है, तो दूसरी कुछ समस्याएं भी पेश आती हैं।
दिलवा स्टेशन से गुजरने वाली अप और डाउन रेलवे लाइन दो राज्यों के बीच बंटती है। गया की ओर से आने वाले यात्री जब इस स्टेशन पर उतरते हैं, तो उनके कदम बिहार में ही रहता हैं, लेकिन अगर धनबाद की ओर से आते हैं, तो उनके पांव झारखंड की सीमा में उतरते हैं।
यहां तक होता है कि स्टेशन पर पांच कदम चलने से ही राज्यों के नाम तक बदल जाते हैं। इस स्थिति के मद्देनज़र कभी कोई घटना हो जाए तो दो राज्यों की पुलिस के बीच अक्सर कन्फ्यूज़न हो जाता है। सीमा विवाद के कारण कभी पुलिस पहुंच नहीं पाती, तो कभी एक ही घटना को लेकर दोनों राज्यों की पुलिस पहुंच जाती है। वैसे यहां पहुंचना आसान है भी नहीं।
यूपी सरकार ने 12 जेल अधीक्षकों का किया तबादला, यहां देखिए लिस्ट
दिलवा एक छोटा सा स्टेशन है, जहां तक पहुंचने के लिए सड़क काफी खराब है। दिलवा स्टेशन के एक छोर पर कोडरमा ज़िले के चंदवारा प्रखंड की पंचायत लगती है, जबकि दूसरे छोर पर बिहार का रजौली अनुमंडल लगता है। हालांकि दिलवा स्टेशन पर आसनसोल वाराणसी पैसेंजर और ईएमयू अप-डाउन ठहरती है, जबकि डाउन लाइन पर केवल इंटरसिटी रुकती है। फिर भी इस स्टेशन से गुजरने वाले यात्री मनोरम दृश्य देखकर प्रसन्न हो जाते हैं।
दिल्ली-हावड़ा रूट पर दिलवा स्टेशन आते ही तीन सुरंगों से गुज़रने के दौरान ट्रेन यात्रियों खासकर बच्चों के लिए सफर बड़ा सुहाना हो जाता है। जंगलों, पहाड़ों के बीच से जब ट्रेन गुज़रती है, तो दृश्यों का लुत्फ़ लेना यात्रियों का शगल हो ही जाता है। धनबाद से गया सफ़र करने के दौरान पहली सुरंग दिलवा में ही मिलती है। यहां कुल 3 सुरंगें हैं, जिनकी शुरुआत दिलवा से होती है. फिर दिलवा स्टेशन पर ट्रेन रुकते ही एक तस्वीर ज़रूर खींची जाती है, देखिए।
कोडरमा व धनबाद रेलमंडल के दिलवा स्टेशन के नज़ारे के अलावा, दो राज्यों के बीच स्टेशन का बंटा होना खासा आकर्षण पैदा करता है। यह एक ऐतिहासिक क्षेत्र है, जहां बोर्ड लगाकर रेलवे ने झारखंड और बिहार की सीमा तय की है। बिहार से झारखंड साल 2000 में अलग हो गया था, लेकिन बंटवारे के बाद भी दोनों राज्यों के सीमावर्ती इलाके पर बने इस स्टेशन पर कोई अलगाव नहीं, बल्कि एक साझेदारी नज़र आती है।