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फ्रेश रहने के लिए ऐसे करें सही डियोडरंट का चुनाव

Deodorant

Deodorant

हम रोजाना कई सारे कैमिकल्स के बीच जीते हैं। इनमें से कुछ हमारी जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं, तो कुछ को हमन शौक या लग्जरी की वजह से अपना लिया है। इनमें एक बड़ा प्रतिशत है डियोड्रेंट (Deodorant) का। डियोड्रेंट, एक ऐसा प्रॉडक्ट है, जो बिलकुल उसी तरह जिंदगियों में शामिल हो गया है, जैसे मोबाइल। घर से निकलते वक्त जैसे मोबाइल का साथ जरूरी सा हो गया है, ठीक वैसे ही डियोड्रेंट का साथ भी बहुत जरूरी हो चला है। पर जैसे मोबाइल अपनी जरुरतों के हिसाब से खरीदा जाता है, ठीक वैसे ही डियोड्रेंट को भी आंख मूंद कर नहीं, बल्कि सोच समझकर ही खरीदना चाहिए। ऐसा ना करना त्वचा को गलत नुकसान पहुंचा सकता है और सेहत को भी। मगर थोड़ी सी जानकारी आपको इन दिक्कतों से बचा भी सकती है।

डियोड्रेंट (Deodorant) और एन्टीपर्सपिरैंट में अंतर

ये दोनों ही अक्सर डियोड्रेंट (Deodorant) के नाम पर खरीदे जाते हैं, जबकि दोनों के अपने अलग फायदे और काम हैं। पर इसके लिए इन दोनों में अंतर समझना जरूरी है। एन्टीपर्सपिरैंट वो प्रॉडक्ट होता है, जो डियोड्रेंट से इतर आपके अंडरआर्म में से पसीना और नमी दोनों को कम करता है। अगर आप पसीने से परेशान रहते हैं, यानि आपको पसीना बहुत ज्यादा आता है तो आपको एन्टीपर्सपिरैंट का ही चुनाव करना चाहिए। विशेषज्ञ मानते हैं कि अच्छे परिणाम के लिए हमें वही एन्टीपर्सपिरैंट चुनना चाहिए, जिसमें 10 प्रतिशत एल्यूमिनियम क्लोराइड हो। डियोड्रेंट तो सबके बीच पसंद किया ही जाता है, लेकिन याद रखिए ये सिर्फ खुशबू नहीं देता है, बल्कि बदबू पैदा करने वाले बैक्टीरिया का भी नाश करता है। ये उन बैक्टीरिया को भगाने का काम करता है, जो पसीने के साथ आपके शरीर पर फैट और प्रोटीन के आ जाने से बनते हैं और बाद में बॉडीओडर की दिक्कत देते हैं। मतलब बॉडीओडर कम करना है तो डियोड्रेंट का ही इस्तेमाल करना चाहिए। अगर हल्का-फुल्का पसीना ही आपको आता है, तो भी डियोड्रेंट का चुनाव सही रहता है।

सुबह के समय स्टैन्डर्ड डियोड्रेंट (Deodorant) का इस्तेमाल करें

क्योंककि आपके अंडरआर्म अपेक्षाकृत ड्राई रहते हैं तो आपको स्ट्रां ग डियोड्रेंट की जरूरत नहीं होती, लेकिन फिर भी हम कहेंगे कि आपको घर से निकलने से पहले कुछ ना कुछ जरूर लगाना चाहिए, इससे आपकी बगल काफी फ्रेश और साफ रहेगी। साथ ही आपको अपने डियोड्रेंट का ब्रांड समय-समय पर बदलना चाहिए। शैम्पू की तरह डियोड्रेंट बदलने से आपका शरीर कई प्रकार के केमिकल का आदि हो जाता है, इस तरह समय साथ ये कम प्रभावी हो जाते हैं। अपनी स्टैण्डर्ड चॉइस को नए नुस्खोंक के साथ बदलते रहिए। फिर कुछ महीने बाद अपने पुराने डियोड्रेंट का इस्तेमाल करना शुरू करें, इससे ये पुराना डीयो और बेहतर काम करेगा।

छह महीने, नया डियो (Deodorant) 

हो सकता है, आप एक ही डियो (Deodorant)  और फ्लेवर को सालों से इस्तेमाल करते हों। ये आपको इतना ज्यादा पसंद हो कि आप इसके आगे किसी को अपना बना ही नहीं पा रहे, तो आपको बदलाव की सख्त जरुरत है। ये आपकी सेहत के लिए बिलकुल भी ठीक नहीं है। हो सकता है अपनी इसी पसंद के चलते आपने कई सारे बैक्टीरिया का अपने शरीर में घर बना रखा हो। दरअसल लंबे समय तक एक ही प्रॉडक्ट के इस्तेमाल से अंडरआर्म्स में मौजूद बैक्टीरिया इस डियो के फॉर्मूला के साथ ईजी हो जाते हैं। ज्यादा समय तक एक ही डियो के इस्तेमाल से ये बैक्टीरिया का खात्मा नहीं कर पाते हैं, बल्कि इनसे बैक्टीरिया को इम्यूनिटी मिलने लगती है। इसलिए जरूरी है कि डियो या एन्टीपर्सपिरैंट को हर छह महीने में बदला जरूर जाए।

एलर्जी और डियो

डियो (Deodrant)  के कारण कई बार एलर्जी ट्रिगर हो सकती है। इसमें त्वचा पर रैशेज, दाने, लाली, खुजली, जलन होना या त्वचा पर पपड़ी बनना या सूजन आना आदि होने के साथ ही सांस सम्बन्धी लक्षण भी पनप सकते हैं। आमतौर पर यह कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस का ही एक प्रकार होता है। ऐसा डियो में मौजूद एल्युमिनियम, अल्कोहल, कृत्रिम सुगंध, पैराबीन्स जैसे प्रिजर्वेटिव्ज, रंग या अन्य रसायनों की वजह से हो सकता है। सबसे पहली चीज है आपकी स्किन की संवेदनशीलता। अगर आपकी स्किन सेंसेटिव है तो बहुत सतर्कता से डियो का चुनाव करें। हो सके तो विशेषज्ञ से परामर्श भी लें।आपको याद रखना होगा कि शरीर पर आने वाला पसीना बदबूदार नहीं होता। ये आपकी स्किन पर पलने वाले बैक्टीरिया होते हैं जो इस बदबू का कारण बनते हैं। इसलिए यदि आप बॉडी ओडर से परेशान हैं तो पहले इसका कारण जानें। बजाय कारण समझे ढेर सारे डियो का उपयोग न करें। हो सकता है आपके साथ कोई ऐसी समस्या हो जिसे सही उपचार की जरूरत हो।

नो मेल-फीमेल

अब डियोडरेंट जेंडर के हिसाब से बाजार में पैर पसार चुके हैं। अक्सर मेल-फीमेल के लिए महक अलग-अलग होती है। पर ये जानकार आपको हैरानी होगी कि मेल हो या फीमेल डियो में कोई खास अंतर नहीं होता है। अंतर सिर्फ और सिर्फ महक का होता है। इसमें पड़े तत्वों में कोई भी अंतर होता ही नहीं है। भले ही पुरुषों के शरीर में ज्यादा पसीना क्यों ना आता हो, पर ये बिलकुल सच है कि उनके लिए खास कोई डियो नहीं बनता है।

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