समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव को पहली दफा विधायक बनाने के लिए उनके गांव सैफई के लोगों ने एक शाम का खाना तक छोडा था ।
सैफई गांव के कइयों सालो तक प्रधान रहे दिवंगत दर्शन सिंह यादव के नाती अंकित यादव अपने बाबा के सुनाए हुए संस्मरणो का जिक्र करते हुए बताते हैं कि नेताजी के (मुलायम सिंह यादव) चुनाव लड़ने के लिए पैसे का जुगाड़ करने में लगे हुए थे लेकिन पैसे का जुगाड़ नहीं हो पा रहा था । एक दिन नेताजी के घर की छत पर पूरे गांववालों की बैठक हुई जिसमे सभी जाति के लोगों ने भाग लिया।
प्रेम प्रसंग में शिक्षिका की गोली मारकर हत्या, हत्यारोपी सहयोगी टीचर गिरफ्तार
उन्होने पुरानी यादो को ताजा करते हुए कहा कि गांव के ही सोने लाल शाक्य ने बैठक में सबके सामने कहा कि मुलायम सिंह यादव हमारे हैं और उनको चुनाव लड़ाने के लिए हम गांव वाले एक शाम खाना नहीं खाए।
एक शाम खाना नहीं खाने से कोई मर नहीं जायेगा पर एक दिन खाना छोड़ने से आठ दिनों तक मुलायम की गाड़ी चल जाएगी । जिस पर सभी गांव वालो ने एक जुट हो सोने लाल के प्रस्ताव का समर्थन किया और वही हुआ।
यादव बताते है कि मुलायम सिंह यादव को बचपन से ही पहलवानी का बड़ा शौक था । शाम को स्कूल से लौटने के बाद वे अखाड़े में जाकर कुश्ती लड़ते थे । जहॉ पर वे अखाड़े में बड़े से बड़े पहलवान को चित्त कर देते थे । वे बताते हैं कि नेता जी का बचपन अभावों में बीता पर वे अपने साथियों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे।
जी-20 शिखर सम्मेलन में वर्चुअल तरीके से भाग लेंगे डोनाल्ड ट्रंप
मुलायम सिंह छोटे कद के थे, लेकिन उनमें गजब की फुर्ती थी। अक्सर वे पेड़ों पर चढ़ जाते थे और आम, अमरुद, जामुन बगैरह तोड़कर अपने साथियों को खिलाते थे। कई बार लोग उनकी शिकायत लेकर उनके घर पहुंच जाते थे। तब उन्हें पिताजी की डांट भी पड़ती थी ।
बाबा बताते थे कि उनकी मित्र मंडली में दो लोग और भी थे। हाकिम सिंह और बाबूराम सेठ काफी दिनों पहले दुनिया से विदा हो चुके है अब 17 अक्टूबर को बाबा भी नही रहे । जिनके दुनिया से विदा होने का सबका बहुत ही दुख है ।
मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी के जिस कालेज में पढ़ाई की, बाद में उसी कालेज में पढ़ाया । मुलायम सिंह यादव को राजनीति में लाने का श्रेय अपने समय के कद्दावर नेता नत्थू सिंह को जाता है। चौधरी नत्थू सिंह ने मुलायम सिंह के लिए अपनी सीट छोड़ दी। उन्हें चुनाव लड़वाया और सबसे कम उम्र में विधायक बनवाया। उस समय बहुत सारे लोग ऐसे थे जिन्होंने मुलायम सिंह को विधानसभा का टिकट दिए जाने का विरोध किया था, लेकिन नत्थू सिंह के आगे किसी का विरोध नहीं चला ।
मुलायम सिंह यादव आज देश के बहुत बड़े नेता हैं लेकिन जब भी उनसे मुलाकात होती है तो बचपन की पुरानी बातों को याद करते हैं।
वे कहते हैं कि मुलायम सिंह ने न जाने कितने लोगों की मदद की है लेकिन वे कभी किसी पर इस बात का एहसान नहीं जताते । बाबा बताते थे कि जब नेता जी को पहली बार विधानसभा का टिकट मिला था तो हम लोगों ने जनता के बीच जाकर वोट के साथ-साथ चुनाव लड़ने के लिए चंदा भी मांगा था।
भाजपा विधायक के मामा की हत्या के आरोप में दो शार्पशूटरों समेत तीन गिरफ्तार
मुलायम सिंह अपने भाषणों में लोगों से एक वोट और एक नोट (एक रुपया) देने की अपील करते थे । नेता जी कहते थे कि हम विधायक बन जाएंगे तो किसी न किसी तरह से आपका एक रुपया ब्याज सहित आपको लौटा देंगे। लोग मुलायम सिंह की बात सुनकर खूब ताली बजाते थे और दिल खोलकर चंदा देते थे।
बाबा बताते थे कि पहले हम लोग साइकिल से चुनाव प्रचार करते थे । बाद में चंदे के पैसों से एक सेकेंड हैंड कार खरीदी पर हम लोगों को इस कार को खूब धक्के लगाने पड़ते थे, क्योंकि यह कार बार-बार बंद हो जाया करती थी। मुलायम सिंह को राजनीति में बहुत संघर्ष करना पड़ा लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी।
नत्थू सिंह ने मुलायम सिंह को राजनीति में आगे बढ़ाया । नत्थू सिंह ने मुलायम सिंह के लिए अपनी सीट छोड़ी। वे कहते थे कि मुलायम सिंह पढ़े-लिखे हैं। इसलिए इनको विधानसभा में जाना चाहिए। नेता जी मुलायम सिंह की एक बड़ी खासियत है कि वे अपने लोगों को हमेशा याद रखते हैं। अपनों को कभी भूलते नहीं।
जहरीली शराब के कारोबारियों की संपत्ति नीलामी कर पीड़ितों में बांटे : सीएम योगी
भारतीय राजनीति में जमीन से जुड़े नेताओं का जब भी जिक्र किया जाता है तो उनमें समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का नाम काफी ऊपर दिखाई देता है। मुलायम सिंह यादव का उनके गृह राज्य उत्तर प्रदेश में उनकी खांटी राजनीति के कारण ‘धरती पुत्र’ की संज्ञा दी जाती है। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह से जुड़े कई किस्से मशहूर हैं। इन्हीं किस्सों में से एक किस्सा ऐसा है, जिसमें कहा जाता है कि उन्होंने मंच पर ही एक पुलिस इंस्पेक्टर को उठाकर पटक दिया था। बताया जाता है कि वह पुलिस इंस्पेक्टर मंच पर एक कवि को उसकी कविता नहीं पढ़ने दे रहा था । 22 नवंबर, 1939 को इटावा के सैफई में जन्मे मुलायम सिंह यादव के पिता एक पहलवान थे और मुलायम सिंह को भी पहलवान बनाना चाहते थे। हालांकि मुलायम सिंह पहलवानी के कारण ही राजनीति में आए। दरअसल मुलायम सिंह यादव के राजनैतिक गुरु नत्थूसिंह मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती प्रतियोगिता के दौरान मुलायम से काफी प्रभावित हुए और फिर यहीं से मुलायम सिंह यादव का राजनैतिक करियर शुरु हो गया।
सौरव गांगुली ने वीरू को कुछ ऐसे दिया IPL 2020 की सफलता का क्रेडिट
मुलायम सिंह यादव साल 1967 में इटावा की जसवंतनगर विधानसभा से पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। मुलायम सिंह यादव यह चुनाव भारतीय राजनीति के दिग्गज राममनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर यह चुनाव जीते थे। इसी बीच 1968 में राममनोहर लोहिया का निधन हो गया। इसके बाद मुलायम उस वक्त के बड़े किसान नेता चरणसिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल में शामिल हो गए। 1974 में मुलायम सिंह बीकेडी के टिकट पर दोबारा विधायक बने। इसी बीच इमरजेंसी के दौरान मुलायम सिंह यादव भी जेल गए। जसवंतनगर से तीसरी बार विधायक चुने जाने पर मुलायम सिंह यादव रामनरेश यादव की सरकार में सहकारिता मंत्री बने। चरणसिंह के निधन के बाद मुलायम सिंह यादव का राजनैतिक कद बढ़ना शुरु हुआ। हालांकि चरण सिंह की दावेदारी के लिए मुलायम सिंह यादव और चरण सिंह के बेटे और रालोद नेता अजीत सिंह में वर्चस्व की लड़ाई भी छिड़ी।
1990 में जनता दल में टूट हुई और 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की नींव रखी। राजनैतिक गठजोड़ के चलते मुलायम सिंह यादव 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 1991 में हुए मध्यावधि चुनाव हुए और मुलायम सिंह यादव को हार का मुंह देखना पड़ा। 1993 में मुलायम सिंह यादव ने सत्ता कब्जाने के लिए बहुजन समाज पार्टी के साथ गठजोड़ कर लिया। यह गठजोड़ काम कर गया और वह फिर से सत्ता में आ गए। मुलायम सिंह यादव केन्द्र में रक्षा मंत्री भी बने। एक बार गठजोड़ के चलते मुलायम सिंह यादव देश के प्रधानमंत्री बनने के काफी करीब पहुंच गए थे, लेकिन लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया।