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आज है शीतला सप्तमी, जानिए इस पर्व का महत्व, पूजा विधि और आरती

sheetla saptami

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शीतला सप्तमी व्रत 3 अप्रैल शनिवार को है. शीतला सप्तमी व्रत मां शीतला देवी को समर्पित है. शीतला सप्तमी के दिन भक्त मां शीतला की पूजा-अर्चना और व्रत  करते हैं ताकि उन्हें सभी कष्टों से मुक्ति मिल सके. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां शीतला का व्रत करने से शरीर निरोगी  होता है और चेचक  जैसे संक्रामक रोग में भी मां भक्तों की रक्षा करती हैं. शास्त्रों के अनुसार शीतला माता गर्दभ यानी गधे की सवारी करती हैं. उन्होंने अपने एक हाथ में कलश पकड़ा हुआ है और दूसरे हाथ में झाडू है. ऐसा माना जाता है कि इस कलश में लगभग 33 करोड़ देवी-देवता वास करते हैं.

शीतला मां देती हैं कष्टों से मुक्ति:

हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार जो भक्त सच्चे मन से मां शीतला की पूजा-अर्चना और यह व्रत करता है उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है. माना जाता है कि मां शीतला का व्रत करने से शरीर निरोगी होता है. रोगों से भी मां अपने भक्तों की रक्षा करती हैं.

शीतला मां पूजा विधि:

– व्रत वाले दिन यानी कि शीतलाष्टमी को सुबह ही नित्यकर्म और स्नान के बाद मां की पूजा के दौरान उन्हें बासी भोजन का भोग लगाया जाता है. इसके बाद यह खाना ही प्रसाद के तौर पर घर के अन्य सदस्यों को दिया जाता है. ऐसी मान्‍यता है कि झाड़ू से दरिद्रता दूर होती है और कलश में धन कुबेर का वास होता है. माता शीतला अग्नि तत्व की विरोधी हैं.

शीतला मां की आरती

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।

आदि ज्योति महारानी, सब फल की दाता॥

॥ॐ जय शीतला माता…॥

रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भाता।

ऋद्धि-सिद्धि चँवर ढुलावें, जगमग छवि छाता॥

॥ॐ जय शीतला माता…॥

विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता।

वेद पुराण वरणत, पार नहीं पाता॥

॥ॐ जय शीतला माता…॥

इन्द्र मृदङ्ग बजावत, चन्द्र वीणा हाथा।

सूरज ताल बजावै, नारद मुनि गाता॥

॥ॐ जय शीतला माता…॥

घण्टा शङ्ख शहनाई, बाजै मन भाता।

करै भक्त जन आरती, लखि लखि हर्षाता॥

॥ॐ जय शीतला माता…॥

ब्रह्म रूप वरदानी तुही, तीन काल ज्ञाता।

भक्तन को सुख देती, मातु पिता भ्राता॥

॥ॐ जय शीतला माता…॥

जो जन ध्यान लगावे, प्रेम शक्ति पाता।

सकल मनोरथ पावे, भवनिधि तर जाता॥

॥ॐ जय शीतला माता…॥

रोगों से जो पीड़ित कोई, शरण तेरी आता।

कोढ़ी पावे निर्मल काया, अन्ध नेत्र पाता॥

॥ॐ जय शीतला माता…॥

बांझ पुत्र को पावे, दारिद्र कट जाता।

ताको भजै जो नाहीं, सिर धुनि पछताता॥

॥ॐ जय शीतला माता…॥

शीतल करती जननी, तू ही है जग त्राता।

उत्पत्ति बाला बिनाशन, तू सब की घाता॥

॥ॐ जय शीतला माता…॥

दास विचित्र कर जोड़े, सुन मेरी माता।

भक्ति आपनी दीजै, और न कुछ भाता॥

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