मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा (Purnima) इस बार विशेष संयोग लेकर आई है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार पूर्णिमा तिथि का आरंभ शनिवार 14 दिसंबर होगा और यह रविवार 15 दिसंबर को समाप्त होगा। स्नान-दान का पुण्यकाल रविवार को रहेगा। पंडित सूर्यमणि पांडेय ने बताया कि मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इस दिन गंगा, यमुना या किसी पवित्र नदी में स्नान, दान और पूजा का फल कई गुना अधिक मिलता है। मान्यता है कि इस दिन किए गए दान और व्रत से पुण्य की प्राप्ति होती है और सभी कष्ट दूर होते हैं।
स्नान और दान: रविवार को पवित्र नदी में स्नान कर दान-पुण्य करना शुभ रहेगा। अन्न, वस्त्र, तिल और गुड़ का दान विशेष फलदायी है।
पूजा-विधि:
इस पावन दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का बहुत अधिक महत्व होता है। आप नहाने के पानी में गंगा जल डालकर स्नान भी कर सकते हैं नहाते समय सभी पावन नदियों का ध्यान कर लें।
नहाने के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
सभी देवी- देवताओं का गंगा जल से अभिषेक करें।
पूर्णिमा (Purnima) के पावन दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व होता है।
इस दिन विष्णु भगवान के साथ माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना भी करें।
भगवान विष्णुको भोग लगाएं। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को भी शामिल करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी के बिना भगवान विष्णु भोग स्वीकार नहीं करते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें।
इस पावन दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का अधिक से अधिक ध्यान करें।
पूर्णिमा (Purnima) पर चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व होता है।
चंद्रोदय होने के बाद चंद्रमा की पूजा अवश्य करें।
चंद्रमा को अर्घ्य देने से दोषों से मुक्ति मिलती है।
इस दिन जरूरतमंद लोगों की मदद करें।
अगर आपके घर के आसपास गाय है तो गाय को भोजन जरूर कराएं। गाय को भोजन कराने से कई तरह के दोषों से मुक्ति मिल जाती है।