हिंदू धर्म में तुलसी (Tulsi) का स्थान बेहद पवित्र माना गया है। इसे विष्णु प्रिया कहा जाता है और हर पूजा में तुलसी दल का विशेष महत्व होता है। लेकिन शास्त्रों में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि ग्रहण काल में तुलसी पूजा और तुलसी पत्तों का चयन वर्जित है। मान्यता है कि इस समय तुलसी का तोड़ना या पूजा करना अशुभ फल देता है। आइए जानते हैं कारण और उपाय।
तुलसी (Tulsi) छूना निषेध
पुराणों के अनुसार ग्रहण काल में वातावरण में राहुकेतु की नकारात्मक ऊर्जा सक्रिय रहती है। इस समय किसी भी पवित्र वस्तु का छेदन या तोड़ना अशुभ माना जाता है। तुलसी को माता का स्वरूप माना गया है और ग्रहण के समय इसे छूना भी निषेध बताया गया है। माना जाता है कि इस समय तोड़ी गई तुलसी पूजा में स्वीकार्य नहीं होती।
ग्रहण काल में तुलसी (Tulsi) पूजा नहीं होती
ग्रहण काल में तुलसी (Tulsi) पूजा वर्जित है क्योंकि तुलसी दल को ग्रहण की छाया अपवित्र कर देती है। शास्त्र कहते हैं कि इस समय भगवान विष्णु और लक्ष्मी भी तुलसी के पत्ते स्वीकार नहीं करते। इसी वजह से तुलसी पूजन, तुलसी दल अर्पण और तुलसी सेवन वर्जित माने जाते हैं।
ग्रहण काल में पूजा के लिए तुलसी (Tulsi) पत्तों की व्यवस्था पहले से कर लेने की परंपरा है। ग्रहण शुरू होने से पहले तुलसी दल तोड़कर रख लें। तुलसी दल को गंगाजल छिड़ककर पवित्र स्थान पर रख दें। ग्रहण के बाद नहाकर शुद्ध होकर इन्हें भगवान को अर्पित किया जा सकता है।
धार्मिक मान्यता और आस्था
धार्मिक मान्यता है कि ग्रहणकाल में तुलसी (Tulsi) तोड़ने वाला व्यक्ति पाप का भागी होता है। यही कारण है कि घरों में बुजुर्ग ग्रहण से पहले ही तुलसी दल सुरक्षित रख लेने की सलाह देते हैं। ऐसा करने से पूजा भी बाधित नहीं होती और शास्त्रीय नियमों का उल्लंघन भी नहीं होता।
आधुनिक दृष्टिकोण
आधुनिक विज्ञान ग्रहण को केवल खगोलीय घटना मानता है, लेकिन परंपराओं का महत्व यह है कि इनसे अनुशासन और श्रद्धा बनी रहती है। तुलसी को आयुर्वेद में औषधीय पौधा माना गया है, इसलिए इसका सम्मान होता है। ग्रहण से पहले तुलसी (Tulsi) चुनने और सुरक्षित रखने की परंपरा इसी सम्मान और सतर्कता का प्रतीक है। यही वजह है कि ग्रहण काल में तुलसी पूजा और तुलसी दल का चयन निषेध है। इसलिए शास्त्रों के अनुसार तुलसी दल पहले से तोड़कर सुरक्षित रखना चाहिए और ग्रहण समाप्त होने के बाद ही उनका उपयोग करना चाहिए।