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उत्तर प्रदेश दिवस: जानें पहले किस नाम से जाना जाता था उत्तर प्रदेश

Uttar Pradesh Day

Uttar Pradesh Day

दिलचस्प है कि उत्तर प्रदेश दिवस (Uttar Pradesh Day) पहले महाराष्ट्र में मनाया जाना शुरू हुआ। वहां उत्तर प्रदेश वासियों के इस आयोजन का राज ठाकरे ने विरोध भी किया था। उससे भी दिलचस्प है कि उत्तर प्रदेश में इसके आयोजन का निमित्त बने महाराष्ट्र वासी तत्कालीन राज्यपाल राम नाइक। उन्होंने अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की सरकार के दौरान अन्य राज्यों के दिवस की भांति उत्तर प्रदेश दिवस (Uttar Pradesh Day) के प्रतिवर्ष आयोजन का सुझाव दिया था। माना इसे योगी आदित्यनाथ (CM Yogi) की सरकार ने। 24 जनवरी 2018 को पहली बार प्रदेश में उत्तर प्रदेश दिवस मनाया गया।

अतीत में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) कई नामों से जाना गया

24 जनवरी 1950 को प्रदेश को उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) नाम मिला। प्रदेश के इस नए नाम को लेकर काफी मंथन हुआ था। नए नामकरण के पहले के दौर में भी प्रदेश के नाम बदलते रहे। वैदिक युग में ब्रह्मर्षि देश और मध्य देश के नाम से पुकारा जाने वाला यह प्रदेश अंग्रेजों के दौर में बंगाल प्रेसिडेंसी के अधीन था। 1834 में बंगाल, बॉम्बे और मद्रास के अलावा आगरा चौथी प्रेसिडेंसी बनी। 1836 में आगरा प्रेसिडेंसी लेफ्टिनेंट गवर्नर के अधीन आई। 1858 में लार्ड केनिंग ने प्रशासनिक कामकाज आगरा से इलाहाबाद स्थानांतरित किया। दिल्ली अलग की गई। नार्थ वेस्टर्न प्रॉविंस का गठन हुआ। 1868 में हाईकोर्ट भी आगरा से इलाहाबाद स्थानांतरित कर दिया गया। प्रदेश का शक्ति केंद्र इलाहाबाद बन गया।

अंग्रेजों के दौर में आखिरी नाम बदलाव 1937 में

1856 में अवध को चीफ कमिश्नर के अधीन किया गया। इसके जिले नार्थ वेस्टर्न प्रॉविंस में शामिल किए गए। 1877 में प्रदेश का नाम किया गया, नार्थ वेस्टर्न प्राविन्सेज एंड अवध। 1902 में प्रदेश के नाम में एक बार फिर परिवर्तन किया गया। इस बार नाम मिला, यूनाइटेड प्राविन्सेज ऑफ आगरा एंड अवध। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान प्रदेश के नाम में आखिरी परिवर्तन अप्रैल 1937 में किया गया। नाम संक्षिप्त करके हुआ यूनाइटेड प्रॉविंस। आजादी के बाद अंग्रेजों के दिये अंग्रेजी नाम छोड़कर नए नाम पर चर्चा हुई। अनेक नाम उभरे। पर किसी एक पर सहमति नहीं बनी।

गुलामी के दौर की याद से छुटकारे के लिए प्रदेश के नाम परिवर्तन को बताया गया जरूरी

11 सितंबर 1947 को यूनाइटेड प्रॉविंस की असेम्बली में कांग्रेस के सदस्य चंद्र भाल ने प्रदेश का नाम बदलने का प्रस्ताव पेश किया। देश आजाद हुए महीना भर भी नही बीता था। प्रस्ताव पेश करते हुए उन्होंने कहा कि हम सभी को और नागरिकों को नए जन्म की खुशी का आभास हो रहा है। जन्म के बाद नामकरण सबसे जरूरी संस्कार होता है। यूनाइटेड प्रॉविंस गुलामी के दौर की याद दिलाता है। गुलामी से छुटकारे के बाद उसकी याद दिलाने वाले प्रदेश के नाम से भी छुटकारा जरूरी है। चंद्र भाल के इस प्रस्ताव का राम चन्द्र गुप्त, बद्री दत्त पांडे, राधे राम, राम नारायण गर्ग आदि सहित सदन के तमाम सदस्यों ने जोरदार समर्थन किया था। संपूर्णानंद जी तब प्रदेश के शिक्षा मंत्री थे। उन्होंने कहा कि अवध नाम पर बृज और काशी क्षेत्र शायद ही सहमत हों। चंद्र भाल जी ने कहा कि अवध नाम तो उदाहरण के तौर पर बताया गया। प्रदेश का नाम आर्यावर्त, हिंदुस्तान या हिन्द भी हो सकता है।

असेंबली के मुस्लिम सदस्यों ने नाम परिवर्तन को बताया था गैरजरूरी

मुस्लिम सदस्यों मसु-दुल जमान और अब्दुल हमीद ने नाम परिवर्तन को गैरजरूरी बताया था। उन्होंने कहा था कि यूनाइटेड प्रॉविंस नाम हमारी सुदृढ एकता प्रकट करता है। पंत कैबिनेट के इकलौते मुस्लिम मंत्री हाफिज मोहम्मद इब्राहिम का सुझाव था कि नाम परिवर्तन के विषय में जल्दबाजी में कोई फैसला लेने की जगह इस मुद्दे पर आम सहमति बनाना बेहतर होगा। नाम परिवर्तन के पक्ष में बहुमत होने लेकिन बहस के तीखी होते जाने के कारण तत्कालीन वित्त मंत्री कृष्ण दत्त पालीवाल का सुझाव था कि नए नाम पर सहमति बनाये जाने की जिम्मेदारी कैबिनेट को सौंप दी जाए। सदन ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। सरकार ने मुद्दे पर विचार के लिए कमेटी गठित कर दी, जिसे एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट देनी थी।

जनता ने भी सुझाए थे नाम; प्रदेश कांग्रेस का बहुमत था “आर्यावर्त” के पक्ष में

प्रदेश के नए नाम का विषय जनता के बीच आने के बाद लगभग 20 नामों के सुझाव आये। इसमें आर्यावर्त और हिन्द के अलावा हिमालय प्रदेश, बृज कौशल, ब्रह्मावर्त, ब्रह्मदेश उत्तराखंड, राम-कृष्ण प्रान्त, राम कृष्ण प्रदेश, भारत खंड, मध्यदेश, नैमिषारण्य प्रदेश, नव हिन्दू जैसे नाम शामिल थे। अक्टूबर 1949 में प्रदेश के नाम को लेकर किसी फैसले पर पहुंचने का दबाव बढ़ गया। संविधान सभा संविधान प्रारूप को अंतिम रूप दे रही थी। संपूर्णानंद जी की पहल पर 1 नवम्बर 1949 को यह विषय फिर से कैबिनेट के सामने आया। बड़े बहुमत से अंतिम सहमति आर्यावर्त नाम पर ही बनी। बावजूद इसके कैबिनेट ने अकेले यह फैसला नही लिया। प्रदेश कांग्रेस कमेटी को इस पर विचार करने के लिए कहा गया। बनारस में प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठक हुई। बैठक में प्रदेश के ‘आर्यावर्त’ नाम के लिए 106 और मार्कण्डेय सिंह के सुझाये ‘हिन्द’ नाम के पक्ष में 22 वोट पड़े।

संविधान सभा ने किया आर्यावर्त नाम अस्वीकार

प्रीमियर (तब तक मुख्यमंत्री प्रीमियर कहे जाते थे) पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने 15 नवम्बर 1949 को संविधान सभा को निर्णय की जानकारी दी। सभा में प्रदेश से सदस्य महावीर त्यागी ने यूनाइटेड प्रॉविंस का नाम आर्यावर्त किये जाने के पक्ष में प्रस्ताव रखा, लेकिन अन्य राज्यों के कई सदस्यों ने इस नाम पर कड़ा एतराज किया। सेंट्रल प्रॉविंस बरार के सदस्य आरके सिद्धवा ने आक्षेप किया कि यूनाइटेड प्रॉविंस अपने को राज्यों में सबसे महत्वपूर्ण दिखाना और अपना वर्चस्व चाहता है। अध्यक्ष डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा के काम में देरी के हवाले से इस विषय पर बहस की इजाजत नही दी। संविधान सभा ने ‘आर्यावर्त’ नाम अस्वीकार कर दिया।

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कानून मंत्री डॉक्टर बीआर अम्बेडकर ने राज्यों के नाम परिवर्तन के लिए गवर्नर जनरल को अधिकृत करने का प्रस्ताव पेश किया जिसे स्वीकार कर लिया गया। पंत जी ने दूसरे राज्यों पर भारी दिखने वाले ‘आर्यावर्त’ अथवा ‘हिंदुस्तान’ जैसे नाम का पुनः सुझाव न दिए जाने का आश्वासन दिया। 17 नवम्बर 1949 को उन्होंने राज्य की असेम्बली को संविधान सभा के फैसले की जानकारी दी। संविधान सभा ने यूनाइटेड प्रॉविंस का प्रतिनिधित्व कर रहे सदस्यों पर ‘उत्तर प्रदेश’ नाम पर सहमति बनाने की जिम्मेदारी डाली। 24 जनवरी 1950 को यूनाइटेड प्रॉविंस का नया नाम उत्तर प्रदेश घोषित हुआ।

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