लाइफ़स्टाइल डेस्क। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, सतयुग में उत्तर प्रदेश के हरदोई में ही नरसिंह व वामन अवतार हुआ था। कथा है कि देव व दैत्यों के युद्ध में दैत्य पराजित होने लगे। दैत्य राज बलि भी इंद्र के वज्र से मृत हो गए। तब दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने अपनी मृत संजीवनी विद्या से बलि और दूसरे दैत्यों को जीवित कर दिया।
राजा बलि के लिए गुरु शुक्राचार्य ने एक यज्ञ का आयोजन किया और अग्नि से दिव्य रथ, वाण व अभेद्य कवच प्राप्त किए। इससे असुरों की शक्ति बढ़ गई। असुर सेना ने इंद्र की राजधानी अमरावती पर आक्रमण कर दिया। देवराज इंद्र को पता चला कि सौ यज्ञ पूरा करने के बाद बलि स्वर्ग को पाने में सक्षम हो जाएगा।
तब देवराज इंद्र सहायता के लिए श्रीहरि के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने उनकी सहायता के लिए आश्वासन दिया और माता अदिति के गर्भ से वामन रूप में जन्म लेने का वचन दिया। बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद ऋषि कश्यप के कहने पर माता अदिति ने पयोव्रत का अनुष्ठान किया। तब भगवान विष्णु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वादशी को माता अदिति के गर्भ से जन्मे और ब्राह्मण रूप धारण किया।
इस दिन भगवान वामन की पूजा-आराधना की जाती है। विष्णु के 10 अवतारों के क्रम में पांचवां अवतार वामन का था और 24 अवतारों के क्रम में 15वां अवतार था। वामन अवतार पिता से आज्ञा लेकर राजा बलि के पास दान मांगने के लिए गए। उस समय राजा बलि नर्मदा के तट पर अंतिम यज्ञ कर रहे थे।
राजा बलि ने भगवान का आतिथ्य सत्कार कर आसन प्रदान किया। तब राजा बलि को भगवान ने दान की महत्ता को समझाकर यज्ञ के लिए तीन पग भूमि की याचना की। वामन भगवान की शिक्षा से प्रभावित होकर राजा बलि ने और अधिक मांगने का आग्रह किया। लेकिन भगवान अपनी तीन पग भूमि की याचना पर ही अड़े रहे।
गुरु शुक्राचार्य ने बलि को सतर्क भी किया, पर बलि ने इस पर ध्यान नहीं दिया। फिर वामन भगवान ने विराट रूप धारण कर दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया और बलि से पूछा- राजन अब मैं अपना तीसरा पैर कहां रखूं? राजा बलि के समक्ष संकट उत्पन्न हो गया कि वचन न पूरा करने पर अधर्म होगा।
इसलिए बलि ने कहा- ‘भगवान अब तो मेरा सिर ही बचा है। आप इस पर पैर रख दीजिए, क्योंकि संपत्ति का मालिक संपत्ति से बड़ा होता है।’ राजा की इस बात से वामन प्रसन्न हो गए। बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे चिरंजीवी रहने का वरदान देकर पाताललोक का स्वामी बना दिया और बलि के साथ सदा पाताल लोक में द्वारपाल बनकर रहने का वर भी दिया।
इस दिन भगवान वामन की मूर्ति या चित्र की पूजा करें। मूर्ति है तो दक्षिणावर्ती शंख में गाय का दूध लेकर अभिषेक करें। चित्र है तो समान्य पूजा करें। इस दिन भगवान वामन का पूजन करने के बाद कथा सुनें और बाद में आरती करें। अंत में चावल, दही और मिश्री का दान कर किसी गरीब या ब्राह्मण को भोजन कराएं।








