गाजियाबाद| सोसाइटी ऑफ वास्तु सांइस के तत्वावधान में रविवार को मॉडल टाउन ईस्ट मुख्यालय पर वास्तु विज्ञान विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार की गई। वेबिनार ने वास्तु सलाहकारों ने वास्तु विज्ञान को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करने का मुद्दा रखा।
वेबिनार में संस्था के राष्ट्रीय चेयरमेन कर्नल तेजेंद्र पाल त्यागी ने कहा कि पुराने जमाने में आगेन्य कोण में रसोई बनाते थे। दक्षिण पूर्व दिशा को आग्नेय कोण माना जाता है। इस दिशा में पूर्व होने के कारण सूरज की रोशनी पहले आती थी और दक्षिण के कारण सूरज की रोशनी सबसे बाद में जाती थी।
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इससे उस समय गृहणी को बिना बिजली के रोशनी मिलती थी। उन्होंने बताया कि भारत में इसका एक और कारण है, यहां दक्षिण पश्चिम मानसून सबसे बड़ा है। इस मानसून की हवाएं केरल के तट से टकराकर पश्चिमी हो जाती हैं। दक्षिण पूर्व की रसोई में ये पश्चिमी हवाएं पूर्व की खिड़की से बाहर चली जाती हैं। वहीं अगर ऐसा ना करते तो रसोई का धुंआ और दुर्गंध वापस घर में आती।
यहीं वास्तु विज्ञान का ज्ञान बच्चों के लिए महत्वपूर्ण है। इससे बच्चों को पुराने जमाने के वास्तु विज्ञान का महत्व समझ आएगा और वास्तु के बारे में जानकारी होगी। वेबिनार में सूरत से सुनील धाबुवाला ने बताया कि कोरोना काल में ओक्सीमीटर में उंगली डालके ग्यारह बार ओम का उच्चारण करने से ऑक्सीजन का स्तर बढ़ जाता है।