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एक ही माह में दो बार रखा जाता है वट सावित्री व्रत, जानें इसके पीछे की वजह

Vat Savitri Vrat

Vat Savitri Vrat

सनातन धर्म में वट सावत्री (Vat Savitri) व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। हर वर्ष ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के अगले दिन वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इसी दिन शनि जयंती भी मनाई जाती है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए वट वृक्ष की पूजा करती हैं। कहते हैं कि इस व्रत के प्रताप से महिलाओं को अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है। इसके अलावा निसंतान महिलाओं को संतान के भी प्राप्ति हो सकती है। वहीं जेष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि पर भी वट सावित्री का व्रत किया जाता है, लेकिन ऐसा क्यों है कि साल में दो बार एक ही माह में यह व्रत दो बार क्यों किया जाता है।

वट सावित्री (Vat Savitri) व्रत कब है?

साल 2025 का पहला वट सावित्री व्रत 26 मई 2025 को पड़ेगा, वहीं साल का दूसरा वट सावित्री व्रत 10 जून को पड़ेगा।

दो बार क्यों किया जाता है वट सावित्री (Vat Savitri)  व्रत?

स्कंद और भविष्य पुराण के अनुसार, वट सावित्री व्रत (Vat Savitri) ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिम को किया जाता है, वहीं निर्णयामृतादि के अनुसार, यह व्रत ज्येष्ठ माह कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को किया जाता है। कहते हैं कि भारत में अमावस्यांत और पूर्णिमानता ये दो मुख्य कैलेंडर प्रचलित हैं। इन दोनों के कैलेंडर में तिथि का अंतर होता है।

पूर्णिमानता कैलेंडर के अनुसार, वट सावित्री (Vat Savitri) व्रत जेष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है। जिसे वट सावित्रि अमावस्या कहा जाता है। इस दिन उत्तर भारत, नेपाल और मिथिला के क्षेत्रों में वट सावित्री व्रत रखा जाता है। जबकि अमानता कैलेंडर के हिसाब से जेष्ठ माह की पूर्णिमा मनाता हैं, जिसे वट पूर्णिमा व्रत कहा जाता है। इसके लिए गुजरात और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में ज्येष्ठ पूर्णिमा पर वट सावित्री व्रत रखा जाता है।

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