उत्तर प्रदेश में लखनऊ की एक अदालत में आत्मसमर्पण करने वाले कानपुर के चर्चित बिकरू कांड में मुख्य अभियुक्त विकास दुबे के भाई दीप प्रकाश की दहशत पूरे क्षेत्र में कायम थी और दबदबा इतना था कि जल्दी दीपू से कोई आंख उठाकर बात भी नहीं कर सकता था और दूसरी तरफ अपराधी विकास दुबे की ही तरह दीपू पर भी कानपुर पुलिस मेहरबान रहती थी।
सूत्रों ने बताया कि छोटी मोटी बातों को दीप प्रकाश उर्फ दीपू विकास दुबे तक पहुंचने ही नहीं देता था और अपने स्तर पर सुलझा देता था जिसके चलते क्षेत्रीय थाने में भी उसका अच्छा खासा दबदबा था। दीपू पर वर्ष 1992 में शिवली थाने में मारपीट का पहला मुकदमा दर्ज हुआ था। वर्ष 2000 के अलावा वर्ष 2002 में शिवली थाने में भी हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ। मारपीट, डकैती के अलावा वर्ष 2004 में पुलिस ने गैंगस्टर एक्ट में उस पर कार्रवाई भी करी थी लेकिन पुलिस मेहरबानी के चलते जल्दी सलाखों के पीछे कभी भी दीपू को ज्यादा समय नहीं रहना पड़ा।
छात्र का अपहरण करने के बाद हत्या करने वालों के खिलाफ गैंगस्टर के तहत कार्रवाई
ताराचंद्र इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या में अपने बड़े भाई विकास के साथ दीपू भी नामजद हुआ था। इस दौरान दोनों को जेल भी जाना पड़ा था और मुकदमे में दोनों ही भाइयों को उम्र कैद की सजा भी सुनाई गई थी लेकिन कानूनी दांवपेच और पुलिस की मेहरबानी के चलते सन 2004 में दीपू को कोर्ट से जमानत मिल गई थी और वह बाहर निकल कर बड़े भाई के साम्राज्य को संभालने लगा था और दिन प्रतिदिन क्षेत्र में दबदबा उसका बढ़ता जा रहा था।
दीपू को बिकरू कांड में आरोपी नहीं बनाया गया था लेकिन जांच के दौरान एसआईटी की संस्तुति के आधार पर थाना चौबेपुर की पुलिस ने फर्जी सिम कार्ड रखने का मुकदमा दर्ज किया था तो वहीं कार में फर्जी तरीके से सरकारी नंबर डालकर रौब गांठने को लेकर दीप पर लखनऊ के कृष्णा नगर थाने में भी मुकदमा दर्ज हुआ है और इसी मामले में लखनऊ पुलिस ने पिछले दिनों उसके घर की कुर्की भी की थी और उस पर 25 हजार रुपये का इनाम भी घोषित किया था।
दीपू पर सिर्फ थाना चौबेपुर में ही 14 मुकदमे दर्ज हैं जिसमें मारपीट से लेकर अन्य कई अपराधों की धारा के अंतर्गत मुकदमा दर्ज हैं कई ऐसे मामले हैं जिनकी संख्या बेहद अधिक है और इन मामलों में विकास के प्रभाव के चलते दीपू पर मुकदमे ही पंजीकृत नहीं हो सके और वही पुलिस भी अपराधी विकास दुबे के प्रभाव में दीपू के आगे भी नतमस्तक नजर आती थी जबकि प्रधानाचार्य हत्याकांड में कोर्ट की तरफ से सजा होने के बावजूद भी कानूनी दांवपेच का इस्तेमाल करते हुए पिछले 16 साल से जमानत पर आराम से घूम गांव के अंदर अपने भाई विकास दुबे की तरह दीपू भी कई अपराधों में शामिल था।