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इस गणेश चतुर्थी पर करें गणपति के इन मंदिरों के दर्शन

Ganesh

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सर्वप्रथम पूजनीय गणेश जी महाराज का विशेष दिन गणेश चतुर्थी ( Ganesh Chaturthi) इस बार 31 अगस्त को पड़ रहा है। मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इस दिन सभी अपने घरों में गणपति जी की मूर्ती स्थापित करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। इसी के साथ इस दिन गणपति जी के मंदिरों में भक्तगण दर्शन करने पहुंचते हैं। देशभर में गणपति जी के कई मंदिर स्थित हैं जिनमे से कुछ अपनी विशेष पहचान के चलते प्रसिद्धि पाते हैं। आज इस कड़ी में हम आपको गणेश जी के प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां आप अपने परिवार या दोस्तों के साथ गणेश चतुर्थी ( Ganesh Chaturthi) के मौके पर दर्शन करने पहुंच सकते हैं। आइये जानते हैं इन मंदिरों के बारे में…

सिद्धिविनायक मंदिर, मुंबई

महाराष्ट्र के मुंबई में स्थित सिद्धिविनायक मंदिर सबसे बड़े गणेश मंदिरों में से एक है। सिद्धिविनायक मंदिर दुनियाभर में प्रसिद्ध है। गणपति के इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 1801 में हुआ था। यह मंदिर मुंबई प्रभादेवी इलाके में काका साहेब गाडगिल मार्ग पर स्थित है। इस मंदिर को गणेश जी के विशेष मंदिर का दर्जा मिला हुआ है। मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी भक्त सच्चे मन से दर्शन के लिए पहुंचता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। अक्सर इस मंदिर में सेलिब्रिटी और नेता पहुंचते हैं। मंदिर की सिद्धि और प्रसिद्धि इतनी है कि आम हो या खास, सभी बप्पा के दर पर खिंचे चले आते हैं। यहां रोजाना लाखों की संख्या में भक्त आते हैं।

अष्टविनायक मंदिर, महाराष्ट्र

इस गणेश चतुर्थी ( Ganesh Chaturthi) आप परिवार के साथ महाराष्ट्र स्थित अष्टविनायक मंदिर में दर्शन के लिए जरूर जाएं। इस मंदिर का विशेष महत्व है और यहां देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं। गणेश चतुर्थी के दौरान यहां भगवान गणेश के दर्शन और पूजा करने को बेहद शुभ माना जाता है और भक्तों की सभी मनोइच्छाएं पूरी होती हैं। वैसे भी गणपति उपासना के लिए अष्टविनायक मंदिरों का विशेष महत्व बताया गया है। ये मंदिर पुणे में स्थित है। अष्टविनायक का अर्थ आठ गणपति होता है। ये अष्टविनायक मंदिर – मोरगांव में मयूरेश्वर, सिद्धटेक में सिद्धिविनायक, पाली में बल्ललेश्वर, लेन्याद्री में गिरिजात्मक, थुर में चिंतामणि, ओझर में विग्नेश्वर, रंजनगांव में महागणपति और अंत में महाद में वरद विनायक हैं। ये सभी मंदिर बेहद प्राचीन हैं। यहां भगवान गणेश के स्वयंभू मंदिर हैं। मान्यता है कि इन स्थानों में भगवान गणेश स्वयं प्रकट हुए हैं।

उच्ची पिल्लयार कोइल मंदिर, तमिलनाडु

यह प्राचीन प्रसिद्ध गणेश मंदिर तमिलनाडु के तिरूचिरापल्ली में स्थित है। यह मंदिर 272 फीट ऊंचे पहाड़ पर है। एक मान्यता के अनुसार, भगवान गणेश ने वहां पर भगवान रंगनाथ की मूर्ति स्थापित की थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रावण के वध के बाद श्रीराम ने विभीषण को भगवान रंगनाथ की मूर्ति भेंट की थी। श्रीराम ने विभीषण से कहा था कि इस बात का ध्यान रखना कि एक बार जहां भी यह मूर्ति रखोगे, वहीं यह स्थापित हो जाएगी। विभीषण उस मूर्ति को लंका ले जाना चाहते थे। रास्ते में विभीषण की इच्छा कावेरी नदी में स्नान करने की हुई, लेकिन वह मूर्ति को जमीन पर नहीं रखना चाहते थे। तभी भगवान गणेश चरवाहे का रूप धारण कर वहां आए और बोले कि तुम स्नान कर लो तब तक वे मूर्ति अपने पास रखेंगे। विभीषण मूर्ति देकर स्नान करने गए तभी गणेश जी ने भगवान रंगनाथ की मूर्ति को वहीं जमीन पर रख दिया।

डोडीताल, उत्तराखंड

उत्तरकाशी जिले के डोडीताल को गणेशजी का जन्म स्थान माना जाता है। यहां पर माता अन्नपूर्णा का प्राचीन मंदिर हैं जहां गणेशजी अपनी माता के साथ विराजमान हैं। डोडीताल, जोकि मूल रूप से बुग्याल के बीच में काफी लंबी-चौड़ी झील है, वहीं गणेश का जन्म हुआ था। यह भी कहा जाता है कि केलसू, जो मूल रूप से एक पट्टी है (पहाड़ों में गांवों के समूह को पट्टी के रूप में जाना जाता है) का मूल नाम कैलाशू है। इसे स्थानीय लोग शिव का कैलाश बताते हैं। केलसू क्षेत्र असी गंगा नदी घाटी के सात गांवों को मिलाकर बना है। गणेश भगवान को स्थानीय बोली में डोडी राजा कहा जाता हैं जो केदारखंड में गणेश के लिए प्रचलित नाम डुंडीसर का अपभ्रंश है। मान्यता अनुसार डोडीताल क्षेत्र मध्य कैलाश में आता था और डोडीताल गणेश की माता और शिव की पत्नी पार्वती का स्नान स्थल था। स्वामी चिद्मयानंद के गुरु रहे स्वामी तपोवन ने मुद्गल ऋषि की लिखी मुद्गल पुराण के हवाले से अपनी किताब हिमगिरी विहार में भी डोडीताल को गणेश का जन्मस्थल होने की बात लिखी है। वैसे कैलाश पर्वत तो यहां से सैंकड़ों मील दूर है परंतु स्थानीय लोग मानते हैं कि एक समय यहां माता पार्वती विहार पर थी तभी गणेशजी का जन्म हुआ था।

खजराना गणेश मंदिर, इंदौर

मध्य प्रदेश के इंदौर में खजराना गणेश मंदिर स्थित है। यह स्वयंभू मंदिर है। देश के सबसे धनी गणेश मंदिरों में खजराना के मंदिर का नाम शामिल है। मान्यता है कि यहां भक्त की हर मुराद पूरी होती है। मन्नत पूरी होने के बाद भक्त यहां आकर गणेश जी की प्रतिमा की पीठ पर उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं और भोग लगाकर भगवान का आभार व्यक्त करते हैंं। इस मंदिर में गणेश जी की 3 फीट ऊंची प्रतिमा है जिसे बावड़ी से निकाली गया है।

रणथंभौर गणेश मंदिर, राजस्थान

राजस्थान के रणथंभौर में बना यह गणेश मंदिर भारत में ही नहीं, दुनिया में पहला गणेश मंदिर माना जाता है। इस मंदिर में गणेश जी की त्रिनेत्री प्रतिमा विद्यमान है। यह प्रतिमा स्वयं भू प्रकट है। 1000 साल से भी ज्यादा पुराना यह मंदिर रणथंभौर किले में सबसे ऊंचाई पर बना है। खास बात यह है कि राजस्थान का यह गणेश मंदिर पहला है, जहां गणपति जी का पूरा परिवार उनके साथ है। गणेश जी की पत्नी रिद्धि और सिद्धि और दो पुत्र शुभ-लाभ भी इस मंदिर में मौजूद है।

कनिपकम विनायक मंदिर, चित्तूर

यह विनायक मंदिर आंध्र प्रदेश में चित्तूर जिले में कनिपकम में स्थित है। कुलोथुंग चोला ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। बाद में 14वीं सदी के प्रारंभ में विजयनगर साम्राज्य के शासकों ने इस मंदिर का विस्तार कराया। भगवान गणेश की पूजा अर्चना के लिए लाखों की संख्या में भक्त आते हैं। अधिकतर भक्त ब्रह्मोत्सवम फेस्टिवल के दौरान गणेश चतुर्थी को विनायक के दर्शन के लिए आते हैं।

मधुर महागणपति मंदिर, केरल

यह भी अति प्राचीन मंदिर है जो मधुवाहिनी नदी के तट पर बना है। दसवीं शताब्दी के इस मंदिर की गणेश मूर्ति न ही मिट्टी की बनी है और न ही किसी पत्थर की यह न जाने किस तत्व से बनी है। इस मंदिर और इसकी मूर्ति को नष्ट करने के लिए एक बार टीपू सुल्तान यहां आया था परंतु यहां की किसी चीज ने उसे आकर्षित किया और उसका फैसला बदल गया। इस मंदिर से जुड़ी रोचक कथा यह भी है कि पहले ये मंदिर भगवान शिव का हुआ करता था, परंतु प्राचीन कथा के अनुसार पुजारी के बेटे ने यहां भगवान गणेश की प्रतिमा का निर्माण किया। पुजारी का ये बेटा छोटासा बच्चा था। कहते हैं कि खेलते-खेलते मंदिर के गर्भगृह की दीवार पर बनाई हुई उसकी प्रतिमा का धीरे-धीरे आकार बढ़ाने लगा। वो हर दिन बड़ी और मोटी हो जाती थी। उसी समय से ये मंदिर भगवान गणेश का बेहद खास मंदिर हो गया।

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