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गोबर के बने दिये और मूर्तियों से दीपावली करें पर मां लक्ष्मी का स्वागत

गाय का गोबर की शुद्धता और प्राचीनता किसी से छिपी नहीं है, आदिकाल से गोबर से घर, मंदिर और आंगन की लिपाई से शुद्धता की परंपरा चली आ रही है। इसी परंपरा का निर्वहन करके इस दीपावली को भी शुभ बनाया जा सकता है। इस मंशा को पूरा करने लिए बाजार में गोबर के दीपक और गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा अब उपलब्ध हो चुकी है। इससे न सिर्फ परंपरा का निर्वहन होगा बल्कि पर्यावरण संरक्षण का भी ख्याल रखा जा सकेगा। इसकी शुरुआत कन्नौज से हो चुकी है, यहां पर गाय के गोबर से निर्मित दीये और मूर्तियां बाजार में मौजूद हैं।

कन्नौज में इस बार जिले में दीपावली पर्यावरण के लिहाज से भी शुभ होगी क्योंकि गोबर निर्मित दीये और मूर्तियां राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के स्वयं सहायता समूह तैयार कर रहे हैं, जिनका मकसद पर्यावरण संरक्षण के साथ विलुप्त हो रही पुरातन चीजों को बढ़ावा देना है। मिशन के निर्देश पर सदर ब्लाक के ग्राम हैबतपुर कटरा में जय मां दुर्गे समूह की महिलाओं ने दीवाली पर बिक्री करने के लिए गोबर के दीये व गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां हाथ से तैयार की हैं।

जय मां दुर्गे समूह की अध्यक्ष किरन देवी ने बताया कि गोबर पूजन के लिए शुभ होता है। इससे निर्मित मूर्तियां व दीये दोबारा इस्तेमाल में आते हैं। इनमें तुलसी व गेंदा बीज डाले हैं, जो खाद का काम करेंगे। साथ में काली और मुल्तानी मिट्टी भी गोबर के साथ मिलाते हैं। पर्यावरण को किसी तरह नुकसान नहीं पहुंचेगा।

दीवाली पर बिक्री करने के लिए दीये व मूर्तियां दो माह से बनाई जा रही हैं। महिलाएं खुद घरों से गायों का गोबर एकत्र कर निर्मित कर रही हैं। किरन ने बताया कि दस हजार रुपये ऋण लेकर काम शुरू किया है। काफी समय गोबर कूटने-छानने व बनाने में लगता है। अन्य समूह भी इसी तरह बना रहे हैं।

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समूह ने छोटे दीये की कीमत ढाई व बड़े की पांच रुपये रखी है। 21 और 51 रुपये के डिजाइनदार आकर्षक दीये भी हैं। मूर्तियों की कीमत 60, 100 व 125 रुपये है।

जिलाधिकारी राकेश कुमार मिश्र ने बढ़ावा देकर बिक्री सरकारी विभागों से करने के निर्देश दिए हैं। 28 अक्टूबर से दीवाली तक कलेक्ट्रेट, विकास भवन व तहसील गेट पर समूह की महिलाएं स्टाल लगाकर मूर्ति व दीये बेचेंगी। जिला मिशन प्रबंधक शिव बिहारी ने बताया कि विभागों के बाहर बिक्री के लिए पत्र जारी किया जाएगा। इन दीयों की खासियत ये है कि बाद में इन्हें खेतों में खाद के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसी तरह औरैया में गोबर के गणेश-लक्ष्मी व दीए किए जा रहे हैैं। कानपुर में भी समूह पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा उठाए हैैं और गोबर से दीये-मूर्तियां बना रहे हैैं। डीएम ने बताया कि मिशन की पहल से स्वयं सहायता समूहों ने अच्छा काम किया है। इसके सकारात्मक परिणाम आएंगे।

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