नई दिल्ली: जन्म कुंडली में ऊर्जा, शक्ति का वो अद्भुत-अक्षुण भण्डार है, जिसे जप-तप, श्रीरुद्राभिषेक अथवा शांति द्वारा सही दिशा देने पर इसके दोष को योग में बदला जा सकता है क्योंकि यह योग हमेशा कष्ट कारक नहीं होते हैं। कभी-कभी तो यह इतने अनुकूल फल देते हैं कि व्यक्ति को विश्वस्तर पर न केवल प्रसिद्ध बनाते हैं अपितु संपत्ति, वैभव, नाम और सिद्धि के देने वाले भी बन जाते हैं। जन्म कुंडली में 12 प्रकार के प्रबलतम कालसर्प योग कहे गए हैं, जिनमें से प्रमुख काल सर्प योग इस प्रकार हैं।
1. अनंत कालसर्प योग:
ज्योतिषाचार्य अनीस व्यास के मुताबिक लग्न से सप्तम भाव तक बनने वाले इस योग के प्रभाव स्वरूप जातक को मानसिक अशांति, जीवन में अस्थिरता और भारी संघर्ष का सामना करना पड़ता है। इस योग की शांति के लिए बहते जल में चांदी के नाग और नागिन का जोड़ा प्रवाहित करें।
2. कुलिक कालसर्प योग:
द्वितीय से अष्टम स्थान तक पड़ने वाले इस योग के कारण जातक कटु भाषी होता है। कहीं ना कहीं उसे पारिवारिक कलह का सामना करना पड़ता है। किंतु राहु बलवान हो तो आकस्मिक धन प्राप्ति के योग भी बनते हैं।
3. वासुकी कालसर्प योग:
यह योग तृतीय से नवम भाव के मध्य बनता है, जिसके प्रभाव स्वरूप भाई और बहनों से मनमुटाव, साहस व पराक्रम में वृद्धि और कार्य व्यापार में बड़ी सफलता के लिए कठोर संघर्ष करना पड़ता है।
4. शंखपाल कालसर्प योग:
यह योग चतुर्थ से दशम भाव के मध्य निर्मित होता है। इसके प्रभाव से मानसिक अशांति एवं मित्रों तथा संबंधियों से धोखा मिलने का योग रहता है। शिक्षा प्रतियोगिता में कठोर संघर्ष करना पड़ता है।
5. पद्म कालसर्प योग:
पंचम से एकादश भाव में राहु केतु होने से यह योग बनता है, इसके कारण संतान सुख में कमी और मित्रता संबंधियों से विश्वासघात की आशंका रहती है। जातक को अच्छी शिक्षा के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है।
6. महापदम कालसर्प योग:
छठें से लेकर बारहवें भाव तक पड़ने वाले योग में जातक ऋण, रोग और शत्रुओं से परेशान रहता है। कार्यक्षेत्र में शत्रु हमेशा षड्यंत्र करने में लगे रहते हैं, उसे अपने ही लोग नीचा दिखाने में लगे रहते हैं।