साइबेरिया के जंगलों में एक बहुत बड़ा छेद है जो पिछले कुछ समय से चर्चा में चल रहा है। यह छेद एक मीटर लंबा और 50 मीटर गहरा है इस छेद को लेकर कई कहानियां और किस्सों भी है। वहीं वैज्ञानिक हैरान हैं कि यह बड़ा क्यों होता जा रहा है।
बाटागाइका क्रेटर के नाम का यह इलाका जो सबसे बड़े क्रेटरों में से एक है। स्थानीय याकुटियन लोग इस नर्क का रास्ता बताते हैं। आधिकारिक तौर परइस मैगास्लम्प या थर्मोकार्स्ट कहा जाता है। यह हमेशा ही जमे रहने वाला इलाका है जिसे पर्माफ्रॉस्ट कहते हैं। यह क्रेटर करीब 650,000 साल पुराना है जो यूरेशिया में सबसे पुराना क्रेटर है। यह दुनिया का दूसरा सबसे पुराना क्रेटर है।
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यह क्रेटर हर साल करीब 20 से 30 मीटर कर चौड़ा होकर खिसक रहा है। ऐसा यहां बर्फ के पिघलने के बाद पानी के बह जाने के बाद होता है।
माना जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन के कराण यह प्रक्रिया और तेज हो रही है। यहां हजारों सालों से बर्फ के नीचे जमे गैस और खनिज के उत्खनन का नतीजा है कि अब और ज्यादा गैस वायुमंडल में निकल रही है।
जर्मनी के साइंटिफिक मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट की क्सेनिया एशास्टीना ने बीबीसी को ने बताया कि यहां की बर्फ पानी में बदलकर, वाष्पीकृत हो जाती है यह बह जाती है। इसकी वजह से बचे हुए अवसाद बर्फ के साथ नहीं रह पाते और नीचे धंस जाते हैं। इसकी वजह से आसमान भूभाग बन जाता है। इसी वजह से यहां ते दक्षिण पश्चिम इसाके में करीब 70 मीटर गहरी खड़ी दीवार बन गई है।
ससेक्स यूनिवर्सिटी के जियोलॉजी के प्रोफेसर जूलियान मुर्टोन ने का मानना है कि यह समस्या 1950 और 60 के दशक में शुरू हुई थी। इस पर्माफ्रॉस्ट में मानवीय गतिविधियों का पिछले 60 सालों में इस इलाके पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
वैज्ञानिक मानते हैं बाटागाइका क्रेटर का अध्ययन इंसान को उसका जानवरों, पेड़ पौधों और पर्यावरण से अन्य गहरे संबंधों के बारे में अहम जानकारी दे सकता है।