धर्म डेस्क। यह कथा है जब एक ब्राह्मण ने सूर्य पुत्र को कर्ण को शाप दिया था। कथा के अनुसार, एक दिन सूर्य पुत्र कर्ण शिकार के लिए गए। शिकार के दौरान उन्हें झाड़ियों के पीछे से कुछ आवाज आई। उन्हें लगा कि यह किसी हिंसक प्राणी की आवाज हो सकती है। अपनी आशंका पर बिना पड़ताल किए ही कर्ण ने बाण चला दिया। लेकिन वो कोई हिंसक प्राणी नहीं था बल्कि एक गाय थी। उस गाय का एक रखवाला भी था जो कि एक ब्राह्मण था और यह सब देख रहा था। यह सब देख वो बेहद क्रोधित हो गया।
जब कर्ण को पता चला कि उन्होंने एक गाय पर बाण चला दिया तो उन्होंने ब्राह्मण से माफी मांगी। लेकिन ब्राह्मण ने कहा कि वो उसे माफ नहीं कर सकता है। अगर माफी चाहिए तो उसे पहले मेरी गाय को जीवित करना होगा। इसका भूखा बछड़ा मेरे घर पर बंधा हुआ है। वह भूख से बिलख रहा होगा। इस गाय को उसके बछड़े के पास जीवित ले कर जाना है। लेकिन ऐसा करना किसी के बस में कहां… कर्ण ने इस काम में अपनी असमर्थता जताई। तभी ब्राह्मण कर्ण को अपनी उस गलती के लिए शाप दे देता है।
ब्राह्मण कहता है कि जिस तरह तुम रथ सवार होकर अपनी शक्तियों के मध में खुद को श्रेष्ठ समझते हो। दूसरों पर बिना गलती और बिना सोचे-समझे कहर ढाह रहे हो। ऐसे में जब तुम अपने जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रहे होगे तब तुम्हारे रथ के पहिये जमीन में धंस जाएंगे। इस स्थिति में तुम भय के राक्षस से चारों तरफ से घिर जाओगे।
जब कर्ण आगे जाकर अपने जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई यानी महाभारत की लड़ाई लड़ रहे थे तब कर्ण के रथ के पहिये रण भूमि में जमीन में धस जाते हैं। जैसे ही वह अपने रथ के पहिए निकालने के लिए नीचे उतरते हैं तब इस अवसर का लाभ ले अर्जुन धोखे से कर्ण का वध कर देते हैं। इस तरह ब्राह्मण का शाप सच हो जाता है।