संतान की लंबी आयु, आरोग्य और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाने वाला जितिया (Jitiya Vrat) का कठिन व्रत महिलाएं अपनी संतान के लिए रखती हैं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण दिन निर्जला उपवास का होता है। जिसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है और पारण के साथ समाप्त होता है। व्रत का दूसरा दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है, जब महिलाएं 24 घंटे से अधिक समय तक बिना अन्न-जल ग्रहण किए निर्जला व्रत रखती हैं।
यह कठिन तपस्या इस बात का प्रतीक है कि एक मां अपनी संतान की सलामती के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। इस व्रत का महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि भावनात्मक भी है।यह मां और संतान के बीच के अटूट रिश्ते को दर्शाता है। मान्यता है कि इस व्रत को विधि-विधान से करने पर संतान को दीर्घायु प्राप्त होती है और उनका जीवन संकटों से मुक्त रहता है।
जितिया व्रत (Jitiya Vrat) कब है?
पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि 14 सितंबर की सुबह 5 बजकर 4 मिनट से लेकर 15 सितंबर की सुबह 3 बजकर 6 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार, जितिया यानी जीवित्पुत्रिका व्रत इस साल 14 सितंबर 2025, रविवार को रखा जाएगा।
जितिया व्रत (Jitiya Vrat) की पौराणिक कथाएं
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पौराणिक कथाओं के अनुसार, जीमूतवाहन नामक एक राजा थे जो बहुत ही दयालु और परोपकारी थे। उन्होंने अपना राजपाट त्याग कर वन में तपस्या करने का निर्णय लिया। एक बार भ्रमण करते हुए उन्होंने देखा कि नागवंश की एक वृद्ध महिला विलाप कर रही है। पूछने पर उसने बताया कि वह अपने एकमात्र पुत्र को गरुड़ को बलि देने जा रही है, क्योंकि गरुड़ को यह वरदान मिला था कि वह प्रतिदिन एक नाग का भक्षण कर सकता है।
जीमूतवाहन ने उस मां के दुख को देख कर स्वयं को उसके पुत्र के स्थान पर प्रस्तुत किया। जब गरुड़ उन्हें खाने के लिए आया, तो जीमूतवाहन ने उसे अपने बलिदान का कारण बताया। जीमूतवाहन के साहस और परोपकार से गरुड़ प्रसन्न हुए और उन्होंने नागों को न खाने का वरदान दिया। इस तरह, जीमूतवाहन ने एक मां के पुत्र की रक्षा की। तभी से माएं अपनी संतान की रक्षा के लिए जीमूतवाहन की पूजा करती हैं।
चील और सियारिन की कथा
एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार, एक जंगल में एक चील और एक सियारिन रहती थीं। दोनों ने मिलकर जितिया व्रत करने का फैसला किया। लेकिन व्रत के दिन सियारिन भूख बर्दाश्त नहीं कर पाई और चोरी-छुपे खाना खा लिया, जबकि चील ने पूरी निष्ठा से निर्जला व्रत का पालन किया।
जब अगले जन्म में दोनों का पुनर्जन्म हुआ, तो चील ने एक रानी के रूप में जन्म लिया और उसे कई पुत्रों का सुख प्राप्त हुआ। वहीं, सियारिन को एक निर्धन परिवार में जन्म मिला और उसके सारे पुत्रों की अल्पायु में ही मृत्यु हो गई। इस कथा के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि व्रत का पालन पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करना चाहिए।
जितिया व्रत (Jitiya Vrat) की पूजा विधि
जितिया व्रत (Jitiya Vrat) की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है, जिसमें महिलाएं गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान कर सात्विक भोजन करती हैं। दूसरे दिन, वे निर्जला उपवास रखती हैं और जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। इस दिन विशेष रूप से कुश से जीमूतवाहन की प्रतिमा बनाई जाती है और उन्हें फल, फूल और पकवान चढ़ाए जाते हैं। व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है। पारण के लिए विशेष पकवान जैसे झोर, मरुवा की रोटी और नोनी का साग बनाया जाता है।
जितिया व्रत (Jitiya Vrat) का महत्व
जितिया व्रत (Jitiya Vrat) को संतान की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए किया जाता है। माताएं अपनी संतान की रक्षा और दीर्घायु की कामना करते हुए निर्जला उपवास रखती हैं। इस दिन महिलाएं जल तक का त्याग करती हैं, यानी पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। यह व्रत विशेष रूप से मातृत्व और त्याग का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत से संतान पर आने वाले संकट टल जाते हैं और बच्चे का जीवन सुखमय होता है।









