हर माह की पूर्णिमा तिथि भगवान विष्णु को समर्पित हैं। यह तिथि भगवान विष्णु का प्रसन्न करने के लिए शुभ मानी जाती है। वहीं जेष्ठ माह की पूर्णिमा (Jyeshtha Purnima) तिथि को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। कहते कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और दान पुण्य करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है। इसी दिन वट सावित्री पूर्णिमा का व्रत भी किया जाता है, इसलिए जेष्ठ पूर्णिमा के दिन वट वृक्ष की पूजा का महत्व और भी अधिक हो जाती है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा (Jyeshtha Purnima) कब है?
वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 10 जून को सुबह 11 बजकर 35 मिनट पर होगी। वहीं तिथि का समापन 11 जून को दोपहर 1 बजकर 13 मिनट पर होगा। ऐसे में ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि का व्रत 11 जून को करना उचित माना जा रहा है।
जेष्ठ पूर्णिमा (Jyeshtha Purnima) चंद्रोदय का समय
पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को अर्घ्य देना बहुत ही शुभ फलदायी माना जाता है। जेष्ठ पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय का समय शाम 7 बजकर 41 मिनट पर होगा। इस समय व्रती चंद्रमा को अर्घ्य तथा पूजन कर सकते हैं।
ज्येष्ठ पूर्णिमा (Jyeshtha Purnima) पूजा विधि
ज्येष्ठ पूर्णिमा (Jyeshtha Purnima) के दिन पूजा करने के लिए सुबह स्नान कर साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें और व्रत का संकल्प लें। फिर पूजा स्थल की साफ-सफाई कर लें। उसके बाद चौकी लाल रंग के कपड़ा बिछाए। चौकी पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
उसके बाद घी का दीपक जलाएं और गंध, पुष्प, फल, फूल, मिठाई और वस्त्र के साथ माता लक्ष्मी को श्रृंगार की चीजें अर्पित करें। इसके बाद मंत्र जाप और व्रत कथा का पाठ करें।
अंत में आरती कर पूजा संपन्न करें और प्रसाद वितरित करें। इसके साथ ही चंद्रोदय होते ही चंद्रमा को अर्घ्य दें।