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कब है महालक्ष्मी व्रत? नोट करें पूजा विधि और महत्व

Mahalaxmi Vrat

Mahalaxmi Vrat

हिंदू धर्म में हर पर्व, हर व्रत और त्योहार का अपना अलग और विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार हर साल महालक्ष्मी व्रत (Mahalaxmi Vrat) भाद्रपद माह के शुक्ल अष्टमी से शुरू होता है और आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को इस व्रत का समापन होता है।

महालक्ष्मी व्रत (Mahalaxmi Vrat) , गणेश चतुर्थी के चार दिन बाद आता है। यह व्रत सोलह दिनों तक मनाया जाता है। इस व्रत का समापन आश्विन माह की कृष्ण अष्टमी को होता है। साल 2025 में यह व्रत 14 सितंबर 2025, रविवार के दिन समाप्त होगा। इस व्रत का पालन करने से धन और समृद्धि की देवी महालक्ष्मी (Mahalaxmi) प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। इस व्रत को गजलक्ष्मी व्रत के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस व्रत में गज पर बैठी मां लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है।

यह व्रत पितृ पक्ष के दौरान अष्टमी तिथि के दिन पड़ता है। इस दिन श्राद्ध पक्ष में किसी भी शुभ कार्य को संपन्न करना शुभ माना जाता है। इस व्रत को करने से जीवन की समस्याओं का अंत होता है और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

कैसे करें व्रत का उद्यापन?

महालक्ष्मी व्रत (Mahalaxmi Vrat) का उद्यापन आखिरी दिन किया जाता है। सोलह दिन पूजन करने के बाद उद्यापन अवश्य करें। मां लक्ष्मी की पूजा करें, मां का प्रिय भोग बनाएं। इस भोग को सुहागिन महिलाओं को खिलाएं, उन्हें श्रृंगार का सामान भेंट करें। इस दिन 16 गांठ वाला धागा, जो आपने पूजा के दौरान अपने हाथ में बांधा था, उसे भी अंत में महालक्ष्मी के चरणों में रखने के बाद अपने हाथ में बांध सकते हैं।

मां लक्ष्मी का प्रिय भोग

गजलक्ष्मी व्रत के दिन मां लक्ष्मी को उनकी प्रिय चीजों का भोग लगाया जाता है। इस दिन मालपुए का भोग लगाना अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। इस भोग को लगाने से मां लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती हैं।

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