निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत साल की सभी 24 एकादशी व्रत में सबसे कठिन माना जाता है। भगवान विष्णु को समर्पित इस व्रत में पूरे दिन बिना अन्न जल के रहना होता है। कहते हैं इस निर्जला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को सभी एकादशियों का व्रत करने के बराबर पुण्य की प्राप्ति हो जाती है। इसे भीष्म एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं सबसे पहले इस व्रत को महाभारत काल में पांडु पुत्र भीम ने किया था, जिसकी वजह से इसे भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन श्रद्धा भाव से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने के साथ व्रत का पालन करने वालें भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसके अलावा व्यक्ति को समस्त पापों से भी मुक्ति मिलती है।
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) कब है?
वैदिक पंचांग के अनुसार, निर्जला एकादशी यानी जेष्ठ माह की एकादशी तिथि की शुरुआत 6 जून को देर रात 2 बजकर 15 मिनट पर शुरू होगी। वहीं तिथि का समापन अगले दिन 7 जून को तड़के सुबह 4 बजकर 47 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, 6 जून को रखा जाएगा।
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) पूजा विधि
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) के दिन व्रत करने के लिए सुबह उठकर स्नान आदि करें। इसके बाद पीले रंग के कपड़े पहनें और सूर्य देव को जल अर्पित करें।फिर भक्ति भाव से भगवान श्री हरि विष्णु का जलाभिषेक करें और प्रभु का पंचामृत सहित गंगाजल से अभिषेक करें, इसके बाद भगवान विष्णु की श्रद्धा पूर्वक पूजा करें।अब प्रभु को पीला चंदन और पीले पुष्प अर्पित करें। मंदिर में घी का दीपक प्रज्वलित करें। पूरे दिन अन्न या जल का ग्रहण न करें। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करें।निर्जला एकादशी की व्रत कथा का पाठ करें और रात को दीपदान और आरती जरूर करें।
पारण का समय
निर्जला एकादशी के व्रत का पारण अगले दिन यानी 7 जून 2025 को किया जाएगा। इस दिन पारण का सही समय दोपहर 1 बजकर 44 मिनट से लेकर शाम 4 बजकर 31 मिनट तक हैं।