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कब है निर्जला एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व

Ashad Maas

Ashad Maas

निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) व्रत हर साल ज्येष्ठ मा​ह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है. ज्येष्ठ माह में जल की पूजा करने का महत्व है क्योंकि इस मास में सूर्य देव का तेज प्रचंड होता है, जिससे गर्मी अधिक पड़ती है. निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) व्रत को पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है. इस एकादशी व्रत को करने का पुण्य सभी तीर्थों और दानों से भी अधिक बताया गया है.

जो लोग निर्जला एकादशी व्रत करते हैं, वे इस व्रत के पुण्य प्रभाव का लाभ पाते हैं. मृत्य के समय उनकी आत्मा को लेने के लिए देवदूत आते हैं, न कि यमदूत. वे आत्मा को पुष्पक विमान पर बैठाकर स्वर्ग लोक ले जाते हैं. निर्जला एकादशी व्रत सभी व्रतों में उत्तम है. श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी से जानते हैं निर्जला एकादशी व्रत (Nirjala Ekadashi) की तिथि, पूजा मुहूर्त और पारण समय के बारे में.

निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) व्रत तिथि

पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मा​ह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 10 जून दिन शुक्रवार को प्रात: 07 बजकर 25 मिनट पर हो रहा है. इस तिथि का समापन अगले दिन 11 जून शनिवार को प्रात: 05 बजकर 45 मिनट पर हो रहा है.

इस साल निर्जला एकादशी व्रत 10 जून शुक्रवार को रखा जाएगा. गौण निर्जला एकादशी व्रत 11 जून शनिवर को रखा जाएगा. गृहस्थ लोगों को 10 जून को निर्जला एकादशी व्रत रखना है.

निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) मुहूर्त

निर्जला एकादशी व्रत वाले दिन 10 जून को वरीयान् योग सुबह से लेकर रात 11 बजकर 36 मिनट तक रहेगा. इस दिन चित्रा नक्षत्र है और रवि योग सुबह 05 बजकर 23 मिनट से 11 जून को तड़के 03 बजकर 37 मिनट तक है. इसके अलावा दिन का शुभ समय 11 बजकर 53 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक है. यह अभिजित मुहूर्त है.

निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) पारण समय

जो लोग 10 जून को निर्जला एकादशी व्रत रखेंगे, वे 11 जून को पारण दोपहर में 01 बजकर 44 मिनट से शाम 04 बजकर 32 मिनट के मध्य कर लें. पारण करने से ही व्रत पूर्ण होता है.

निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) व्रत का महत्व

निर्जला एकादशी व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से पाप मिटते हैं, दुख और कष्ट दूर होते हैं. इस व्रत के पुण्य प्रभाव से व्यक्ति को मृत्यु के बाद स्वर्ग में स्थान मिलता है. इस दिन जल से भरा कलश, अन्न, जूता आदि का दान करना चाहिए.

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