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नवंबर में कब है प्रदोष व्रत? जानें सही डेट व मुहूर्त

Pradosh Vrat

Pradosh Vrat

नवंबर महीने का प्रदोष का व्रत (Pradosh Vrat) महादेव को समर्पित है। नवंबर में 2 बार प्रदोष व्रत की तिथि पड़ रही है। एक बुध प्रदोष व्रत तो दूसरा गुरु प्रदोष व्रत। प्रदोष के दिन व्रत रखकर संध्या के वक्त शिव भगवान समेत उनके पूरे परिवार की आराधना की जाती है। सनातन धर्म में कार्तिक प्रदोष व्रत का काफी महत्व माना जाता है। मान्यता है की कार्तिक प्रदोष व्रत रखकर शंकर जी की अर्चना करने से जातकी के सभी कष्ट दूर हो सकते हैं। आइए जानते हैं नवंबर के महीने में कब-कब प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) रखा जाएगा, पूजा की विधि, मुहूर्त और शिव जी की आरती-

नवंबर में कब-कब है प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) ?

दृक पंचांग के अनुसार, नवंबर महीने की शुक्ल त्रयोदशी तिथि 13 नवंबर को प्रारम्भ हो रही है, जो 14 नवंबर की सुबह तक रहेगी। ऐसे में नवंबर का पहला शुक्ल प्रदोष व्रत 13 नवंबर को रखा जाएगा। वहीं, नवंबर महीने की कृष्ण त्रयोदशी तिथि 28 नवंबर को प्रारम्भ हो रही है, जो 29 नवंबर की सुबह तक रहेगी। ऐसे में नवंबर का दूसरा कृष्ण प्रदोष व्रत 28 नवंबर को रखा जाएगा। पंचांग के अनुसार, नीचे दिए गए शुभ मुहूर्त में करें पूजा-पाठ-

नवंबर प्रदोष व्रत vके शुभ मुहूर्त

1. शुक्ल त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 13 को दोपहर 01:01 बजे

शुक्ल त्रयोदशी तिथि समाप्त – नवम्बर 14, 2024 को सुबह 09:43 बजे

दिन का प्रदोष समय – 17:28 से 20:07

बुध शुक्ल प्रदोष पूजा मुहूर्त – 17:28 से 20:07

अवधि – 02 घण्टे 39 मिनट्स

2. कृष्ण त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 28, 2024 को सुबह 06:23 बजे

कृष्ण त्रयोदशी तिथि समाप्त – नवम्बर 29, 2024 को सुबह 08:39 बजे

दिन का प्रदोष समय – 17:24 से 20:06

गुरु कृष्ण प्रदोष पूजा मुहूर्त – 17:24 से 20:06

अवधि – 02 घण्टे 42 मिनट्स

शिव जी की आरती

जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा।

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव…॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।

हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥ ॐ जय शिव…॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

त्रिगुण रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे॥ ॐ जय शिव…॥

अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।

चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥ ॐ जय शिव…॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ॐ जय शिव…॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।

जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ॐ जय शिव…॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ॐ जय शिव…॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।

नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी॥ ॐ जय शिव…॥

त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे।

कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय शिव…॥

जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

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