आषाढ़ माह से योग निद्रा में गए भगवान विष्णु अब भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की एकादशी को करवट बदलेंगे. इस दिन भगवान श्री विष्णु के वामन रूप कि पूजा की जाती है. इसे पदमा एकादशी, जयंती एकादशी और परिवर्तनी एकादशी (Parivartani Ekadashi) जैसे नामों से जाना जाता है. कहते हैं कि जाने-अनजाने हुए पापों के प्रायश्चित के लिए पद्मा एकादशी से बेहतर कोई दूसरा व्रत नहीं है. इस दिन जो लोग श्रीहरि का ध्यान करते हैं, उन्हें संसार के सभी सुख प्राप्त होते हैं और मोक्ष का वरदान मिलता है.
परिवर्तनी एकादशी (Parivartani Ekadashi) की महिमा?
नवरात्रि, पूर्णिमा और अमावस्या जैसे प्रमुख व्रतों में एकादशी का व्रत सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. एकादशी व्रत से चन्द्रमा के हर खराब प्रभाव को रोका जा सकता है. ग्रहों के असर को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है. एकादशी व्रत का सीधा प्रभाव मन और शरीर पर पड़ता है. एकादशी के व्रत से अशुभ संस्कारों को भी नष्ट किया जा सकता है. इस बार पद्मा एकादशी का व्रत मंगलवार, 06 सितंबर को रखा जाएगा.
परिवर्तनी एकादशी व्रत (Parivartani Ekadashi) की उत्तम विधि
परिवर्तनी एकादशी (Parivartani Ekadashi) पर प्रातःकाल स्नान करके सूर्य देवता को जल अर्पित करें. पीले वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु की पूजा करें. चूंकि गणेष पर्व चल रहा है, इसलिए आप भगवान गणेश की भी पूजा कर सकते हैं. श्री हरि को पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें. गणेश जी को मोदक और दूर्वा अर्पित करें. पहले गणेश जी और फिर श्रीहरि के मंत्रों का जाप करें. किसी निर्धन व्यक्ति को जल, अन्न-वस्त्र या छाते का दान करें. आखिर में भगवान विष्णु से अपने जीवन की तमाम समस्याएं खत्म करने के लिए प्रार्थना करें.
मुहूर्त और पारण (Parivartani Ekadashi)
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि मंगलवार, 06 सितंबर को सुबह 05 बजकर 54 मिनट पर प्रारंभ होगी और इसका समापन बुधवार, 07 सितंबर को तड़के सुबह 03 बजकर 04 मिनट पर होगा. परिवर्तिनी एकादशी (Parivartani Ekadashi) का पारण गुरुवार, 8 सितंबर को सुबह 06 बजकर 02 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 33 मिनट तक किया जा सकता है.