सनातन धर्म में पूर्णिमा तिथि का खास महत्व होता है। ज्येष्ठ माह में आने वाली पूर्णिमा को वट सावित्री (Vat Savitri) पूर्णिमा का व्रत किया जाता है। उत्तर भारत में यह व्रत ज्येष्ठ अमावस्या के दिन व्रत सावित्री का व्रत किया जाता है। वहीं महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के राज्यों में वट सावित्री पूर्णिमा व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा के मौके पर रखा जाता है, लेकिन इस बार ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि दो दिन लग रही है ऐसे में वट सावित्री पूर्णिमा व्रत और ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत को लेकर असमंजस की स्थिति है।
वट सावित्री (Vat Savitri) पूर्णिमा व्रत कब है?
वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 10 जून को सुबह 11 बजकर 35 मिनट पर होगी। वहीं तिथि का समापन 11 जून को दोपहर 1 बजकर 13 मिनट पर होगा। ऐसे में ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि का व्रत 10 जून को करना उचित माना जा रहा है।
वट सावित्री (Vat Savitri) पूर्णिमा पूजा विधि
वट पूर्णिमा (Vat Savitri) के दिन सुहागिन महिलाएं पूजा के लिए बांस की दो टोकरियां लेकर एक में सात प्रकार के अनाज, कपड़े के दो टुकड़ों से ढक कर रखा जाता है। वहीं दूसरी टोकरी में मां सावित्री की प्रतिमा रखकर धूप, दीप, अक्षत, कुमकुम, मौली आदि से पूजा की जाती है। पू
जा के दौरान वट वृक्ष पर सुहागिन महिलाओं को रोली, कुमकुम, हल्दी, लगाने के साथ ही कच्चा सूत लपेटकर वट वृक्ष की 7, 11 या फिर 21 बार परिक्रमा करनी चाहिए।इसके साथ ही दीपक भी जलाना चाहिए।पूजा के बाद महिलाओं को सावित्री और सत्यवान की कथा सुननी चाहिए। ऐसा करने से व्रती महिलाओं को अखण्ड सौभाग्य का वर प्राप्त होता है।