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जब आसमान में छिप जाएं सूर्यदेव, तो ऐसे करें पूजा

Surya Dev

Surya Dev

हिंदू धर्म में जिन पांच प्रमुख देवी-देवताओं की पूजा बहुत जरूरी मानी गई है, उसमें प्रतिदिन प्रत्यक्ष देर्शन देने वाले सूर्य देवता (surya dev) भी शामिल हैं। आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति कि लिए भगवान सूर्य (surya dev) की साधना अति उत्तम मानी गई है।

जिस सूर्य को ज्योतिष में नवग्रहों का राजा कहा गया है, उसकी पूजा से व्यक्ति के जीवन से जुड़ी सभी बाधा दूर होती है और उसे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। लेकिन यदि बारिश के मौसम में बादलों के कारण और सर्दी के मौसम में कोहरे के कारण सूर्य देव के दर्शन न हो पाएं तो हमें उनकी कैसे साधना करनी चाहिए, क्या है उनकी पूजा का उपाय और महामंत्र आइए इसे विस्तार से जानते हैं।

जब सूर्य न दिखाई दे तो ऐसे करें पूजा

यदि खराब मौसम के कारण आपको सूर्यदेव (surya dev) के दर्शन न हो पाएं तो आपको बिलकुल भी निराश नहीं होना चाहिए और प्रतिदिन की भांति पूर्व दिशा की ओर मुख करके तांबे के बर्तन में रोली, लाल पुष्प, अक्षत और शुद्ध जल डालकर सूर्यदेव का ध्यान करते हुए अर्घ्य देना चाहिए। सूर्य को अर्घ्य देते समय भगवान सूर्य के मंत्र का जप जरूर करते रहें।

सूर्य की पूजा का धार्मिक महत्व

सनातन परंपर में सूर्य की पूजा सदियों से होती चली आ रही है। मान्यता है भगवान राम जो कि सूर्यवंशी थे वे खुद प्रतिदिन उगते हुए सूर्य की पूजा किया करते थे। मान्यता यह भी है कि उन्होंने रावण का वध करने से पहले सूर्य देव का ध्यान किया था। भगवान कृष्ण के पुत्र सांब ने भी सूर्य की साधना-आराधना करके उनका आशीर्वाद लिया थ। मान्यता है कि सूर्य देव के आशीर्वाद से ही सांब को कुष्ठ रोग से ​मुक्ति मिली थी। महाभारत काल में भगवान सूर्य ने ही द्रापैदी की पूजा से प्रसन्न होकर उसे अक्षय पात्र दिया था।

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सूर्य की कृपा पाने का उपाय

जीवन में सभी प्रकार के सुखों को पाने के लिए प्रतिदिन प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और स्नान-ध्यान करने के बाद उगते हुए सूर्य देव को तांबे के लोटे से जल देना चाहिए। भगवान सूर्य की पूजा में विशेष रूप से गुड़ का भोग लगाना चाहिए। यदि आप चाहें तो सूर्य देवता को अर्घ्य के लिए दिए जाने वाले जल में ही गुड़ मिलाकर अर्पित कर सकते हैं। सूर्य देवता को अर्घ्य देने के बाद आदित्य हृदय स्तोत्र का तीन बार पाठ करना चाहिए। आपकी सुविधा के लिए हम सूर्य कृपा बरसाने वाला आदित्य हृदय स्तोत्र नीचे दे रहे हैं, जिसे श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ करने पर शीघ्र ही सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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आदित्य हृदयस्तोत्रम् विनियोग

ॐ अस्य आदित्यह्रदय स्तोत्रस्य अगस्त्यऋषि: अनुष्टुप्छन्दः आदित्यह्रदयभूतो भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।

रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्।

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।

उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा।।

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्।

येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे।।

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।

जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्।।

सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।

चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्।।

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।

पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्।।

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन:।

एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि:।।

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति:।

महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यपाम्पतिः।।

पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु:।

वायुर्वह्नि: प्रजा: प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर:।

आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्।

सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर:।।

हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।

तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्।।

हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि:।

अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन:।।

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग:।

घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः।।

आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:।

कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद्भव:।

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन:।

तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते।।

नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम:।

ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम:।।

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम:।

नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम:।।

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम:।

नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते।।

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे।

भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम:।।

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।

कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम:।।

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे।

नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे।।

नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु:।

पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि:।

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित:।

एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्।।

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च।

यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु:।।

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।

कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव।।

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम्।

एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि।।

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि।

एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्।।

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा।

धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान्।।

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्।

त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्।।

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्।

सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्।।

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण:।

निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति।।

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