पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। रविवार 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देशभर में राष्ट्रीय ध्वज लहराने के साथ मां भारती को आजादी दिलाने के लिए अपनी जान की बाजी लगाने वाले शहीदों को याद किया जाएगा। ऐसे समय में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बिहार के बेगूसराय जिला (तत्कालीन मुंगेर ) के उत्तरी सीमा पर बसे गढ़पुरा के लोगों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।
इतिहास के घटनाक्रम को बेगूसराय सदा प्रभावित करता रहा और मूकदर्शक नहीं रहा। यह अपनी सांस्कृतिक विरासत, संपन्नता, राजनीतिक चेतना और क्रांतिकारी विचार धाराओं के लिए सदा से जाना जाता है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी यहां के लोगों ने उत्कृष्ट भूमिका निभाई तथा गांधीजी के आह्वान पर नमक सत्याग्रह आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।
1930 में अंग्रेजों द्वारा नमक पर टैक्स लगाए जाने के खिलाफ महात्मा गांधी ने जब नमक सत्याग्रह का शंखनाद किया तो बिहार में सबसे पहले गढ़पुरा में नमक बनाया गया। अंग्रेजों के आदेश के खिलाफ नमक बनाकर दो महीनों से भी अधिक समय तक लोगों के बीच बांटा गया था और लोगों ने आजादी की लड़ाई में जी जान लगाकर नमक की कीमत अदा की थी। अंग्रेजों ने नमक बनाने पर टैक्स लगाकर कड़ा कानून बनाया था, तो सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान गांधी जी ने गुजरात में साबरमती आश्रम से लगभग 340 किलोमीटर की पदयात्रा कर दांडी में अंग्रेजी हुकूमत के काले नमक कानून को भंग किया था।
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छह अप्रैल को दांडी में उन्होंने जब नमक बनाकर नमक कानून भंग किया तो देश में क्रांति की आग फैल गई। कोने-कोने में नमक कानून तोड़ो अभियान शुरू हो गया और यह इस अभियान की लौ बिहार भी पहुंची। वहां मुंगेर में जिला परिषद अध्यक्ष मो. शाह जुबेर और उपाध्यक्ष डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने इसकी कमान संभाली।
13 अप्रैल 1930 को मुंगेर की बैठक में तय किया गया कि नमक बनाया जाए, लेकिन जगह तय करना मुश्किल था, क्योंकि नोनिया (एक तरह की विशेष मिट्टी) से ही नमक बनाया जा सकता था। इसी दौरान गढ़पुरा निवासी बिंदेश्वरी प्रसाद सिंह के प्रस्ताव पर गढ़पुरा में नमक कानून भंग करने का निर्णय लिया गया। 17 अप्रैल 1930 को कष्टहरणी घाट पर गंगा में प्रवेश कर श्रीबाबू ने नमक कानून भंग करने का शपथ लिया तथा नाव से गंगा पार करने के बाद काफिला गढ़पुरा की ओर चल पड़ा। श्रीबाबू के नेतृत्व में सत्याग्रहियों के गढ़पुरा पहुंचने से पहले ही लोगों ने तैयारी कर ली थी।
रामजानकी ठाकुरबाड़ी के महंत सुखराम दास ने अपनी ठाकुरबाड़ी का भंडार भोजन के लिए खोल दिया। ठाकुरबाड़ी और गढ़पुरा डाकबंगला को छोड़कर शेष सभी कुंओं में किरासन तेल और गोबर डाल दिया गया, ताकि सत्याग्रहियों पर दमनात्मक कार्रवाई करने आए अंग्रेजों को पानी भी नसीब नहीं हो। 20 अप्रैल की शाम एक सौ किलोमीटर से अधिक लंबी, दुरुह एवं कष्टप्रद यात्रा कर मां भारती के सपूतों का जत्था गढ़़पुरा राम जानकी ठाकुरबाड़ी के परिसर में पहुंचा तो पूरा इलाका भारत माता के जयकारे से गूंज उठा। 21 अप्रैल की सुबह भारत माता का जयकारा लगाते हुए जत्था नमक सत्याग्रह के लिए तय किए गए स्थल की ओर चल पड़ा और दुर्गा गाछी (नोनियां गाछी) में जब नमक बनाने का काम शुरू हुआ तो हजारों की भीड़ जुट गई थी।
नमक बनाने के लिए भट्ठी पर कड़ाह चढ़ते ही एसपी मथुरा प्रसाद सामने आ गए और डीएम ली. साहब के आदेश पर अंग्रेजी फौज ने बर्बरता पूर्वक लाठी चार्ज कर दिया। श्रीबाबू चूल्हे पर चढ़े हुए कराह में गिर गए और सिपाहियों ने उन्हें जानवर की तरह घसीटा, फिर जेल ले गए। लेकिन नमक बनाने का काम नहीं रुका, महीनों तक लगातार नमक बनाकर गांव-गांव में पुड़िया बना कर भेजा जाता रहा। क्रांतिकारी लोगों ने पुलिसिया दमन के बावजूद नमक कानून भंग किया और लगातार नमक बनाकर ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी थी।
आज भी यह नमक सत्याग्रह स्थल बिहार में दांडी और मां भारती के सपूतों की वीरता की याद दिलाता है। सत्याग्रह की प्रतिमूर्ति हर क्षण-हर दिन यहां आने वाले लोगों को आजादी के लिए किए गए संघर्ष की याद दिलाता है। गढ़पुरा नमक सत्याग्रह गौरव यात्रा समिति द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के इस अनमोल कीर्ति की याद में प्रत्येक साल मुंगेर से गढ़पुरा तक पदयात्रा की जाती है।