वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डॉ विपिन ताडा ने जब ”हेड इंजरी” लिखे गए 46 मामलों की जांच करवाई तो मामला संदिग्ध लगा था। इसमें जहर खाने वाले एक बच्चे का मामला भी आया था, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ”हेड इंजरी” आयी। फिर मामला पेंचीदा बन गया।
दरअसल, यह मामला बेलघाट में चल रहा है। इस मामले में एक परिवार में रिश्तेदार आये थे। उसमें एक बच्चा भी था। इसकी संदिग्ध हालात में मौत हो गयी। इसके बाद पुलिसिया जांच पड़ताल शुरू हुई। पता चला कि मौत किसी तरह के जहर से हुई है। सुधबुध खो चुके बच्चे को उसके पिता अस्पताल ले गए थे। डॉक्टर ने उसका इलाज शुरू किया। बच्चे की मौत की पुष्टि और उसके बाद आई पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ”हेड इंजरी” का जिक्र है। फिर मामले का नेचर ही बदल गया। चले इलाज में जहर खाने से हुई मौत की वजह अब दूसरी ओर इशारा कर रही थी।
पोस्टमार्टम में प्राय: हेड इंजरी लिखने वाले डॉक्टरों की प्रवृत्ति से परेशान पुलिस की गुहार आला अफसरों ने भी सुन ली है। शासन ने तय किया है कि सरकारी चिकित्सकों को पोस्टमार्टम करने का तौर तरीका नए सिरे से सिखाया जाए ताकि वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह और साफ कर सकें जिससे पुलिस को विवेचना के दौरान कोई दिक्कत पेश न आए।
46 मामलों में पुलिस-चिकित्सक का टकराव
अब तक 46 के करीब पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डॉक्टर और पुलिस की थ्योरी में टकराव सामने आ चुके हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार पुलिस को इनमें से ज्यादातर मामले में मजबूरन हत्या का केस तक दर्ज करना पड़ा है, लेकिन पुलिस की थ्योरी में मौत की वजह हादसा ही रहा। पिछले दो साल से गोरखपुर पुलिस की यह बड़ी शिकायत मिल रही थी कि कई घटनाओं में मौत सामान्य हाल में हुई है।
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दर्जनों लोगों के सामने कुछ लोग डूब कर मरे हैं। बावजूद वह मामला हत्या की ओर बढ़ता चला जाता था। इतना ही नहीं, कुछ मामलों में सरकारी डॉक्टर ने जहर का इलाज किया, लेकिन मौत के बाद जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट सामने आई तो हेड एंजरी शब्द ने पूरे केस को ही पलट दिया।
जिले के गोला, चिलुआताल, चौरीचौरा, कैम्पियरगंज, गुलरिहा, बेलघाट सहित कई थानों में ऐसे कई मामले सामने आए जिसमें मौत डूबने से होने की बात लोगों ने देखी, पर पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने हेड एंजरी की तरफ इशारा कर मामला ही पेंचीदा बना दिया।