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हमारी नेक नियति, वफादारी में कहां कमी रह गई जो हम घृणा का पात्र बन गए : आजम खान

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azam khan

रामपुर (मुजाहिद ख़ान)। सपा के कद्दावर नेता मोहम्मद आज़म ख़ान (azam khan) जोकि शुक्रवार को सीतापुर जेल से 814 दिन लगभग 27 महीने बाद रिहा हुए हैं। रिहा होने के बाद से आज़म खान (azam khan) से मिलने वालों की लाइन लगी हुई है उसमें सांसद, विधायको, अन्य राजनीतिक पार्टियों के नेताओं, उलेमाओं, समाजिक संगठनों और समर्थक शामिल हैं।

वहीं शनिवार को आज़म ख़ान (azam khan) से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत में अखिलेश यादव के खिलाफ चल रही नाराज़गी और ट्वीट को लेकर आज़म खान (azam khan) ने अपनी पीड़ा बयान करते हुए कहा कि मैं हर उस शख्स का जिसने मेरे लिए दुआ की है मेरे लिए हमदर्दी की है मैं उसका शुक्र गुजार हूं बगैर किसी सियासी तासुव और सियासी जमात के जिम्मेदारान का समाजी लोगों का सबका शुक्रगुजार हूं उनका भी शुक्रगुजार हूं।

अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के मिलने आने की बात और दूत के तौर पर सपा के विधायको को भेजने की बात पर कहा कि मेरी इतेलाह में ऐसा कुछ नहीं है इस बारे में कुछ कह नहीं सकता।

कल दिए बयान कि जो मुस्लिम संस्थाएं हैं उनसे मिलूंगा और थोड़ी देर पहले मौलाना तौकीर रज़ा के घर पर मिलने आने को लेकर कहा कि एक जिंदगी हर चेहरे की जिंदगी है और एक जिंदगी यह है वह कैसे महफूज़ रहें उनकी नस्लें कैसे बचें उनके आकाईद कैसे बचें उनकी जिहालत कैसे कम हो। क्योंकि इन 70-75 सालों में इन सवालों पर कोई बहस हो नहीं सकी है और कोई फैसलाकुन बहस नहीं हो सकी इस बार हम जैसे लोगों ने चाहे जेल के अंदर हो या जेल के बाहर हो पूरी ताकत झोंक दी है उसके बाद भी नतीजे अफसोस नाक रहे? एक फिक्र तो है ही कि आखिर बचाव का रास्ता क्या है मुल्क के जो हालात हैं प्रदेश के खास तौर पर जो हालात है आपसी रिश्तो की जो दरार है गंगा जमुनी तहजीब को सो गार्ड जिसे हम कहने लगे हैं उस पर जो वार हो रहा है उसे कैसे रोका जाए कैसे अमनो अमांन कायम रहे भाईचारा कायम रहे रिश्ते कैसे कायम रहे यह भी तो एक जरूरत है अगर सियासी जमाते इसमें नाकाम रहे तो फिक्र मंदी तो होगी।

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समाजवादी पार्टी से इस्तीफे के सवाल पर कहा कि मेरे इस्तीफे पर क्या सवाल उठता है मैंने इसमें अपनी या पार्टी का जिक्र नहीं किया मैं तमाम सियासी जमातो के ताल्लुक से कह रहा हूं कि उन सबको यह सोचना पड़ेगा चाहे कांग्रेस हो बहुजन समाज पार्टी हो या समाजवादी पार्टी हो तृणमूल कांग्रेस या और पार्टियां हो दूसरे प्रदेशों की मैं मुल्क के उन कमजोर लोगों के बारे में सोचना तो चाहिए और मैं समझता हूं कि भारतीय जनता पार्टी को भी सोचना चाहिए सबका विकास सबका विश्वास यह जुमला है यह हकीकत है।

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मुसलमानों के एक तरफा समाजवादी पार्टी को वोट करने पर भी न आजम खान के लिए आवाज उठाने और न ही मुस्लिम समाज के लिए आवाज उठाने पर कहा कि मैं लंबे अरसे से जेल में रहा अब जेल के बाहर क्या हुआ सियासी माहौल में क्या हुआ क्या हिकमते रहीं क्या मसलहते रही कुछ तो मजबूरियां रही होंगी इस पर न मुझे कोई शिकवा है न शिकायत है बल्कि अफसोस है इस बात का कि बदलाव नहीं आ सका कहां कमी रह गई हमसे यह सोचेंगे। आखिर हमारी नेक नियति में, हमारी वफादारी में, हमारी मेहनत में, दयानत में, ईमानदारी में, वतन परस्ती में कहां कमी रह गई जो हम इस कदर घृणा का पात्र बन गए वो भी सोचेंगे।

उप चुनाव लोकसभा में क्या रणनीति रहेगी इस पर कहा जो पार्टी का हुकुम होगा और जो पार्टी फैसला लेगी वही होगा मैं तो एक अदना सा वर्कर हूं। संस्थापक सदस्य होने के सवाल पर कहा कि मैं भूल गया था माफी चाहूंगा आपने याद दिलाया तो मुझे याद आया हां मैं रहा था उस वक्त पार्टी में रहा था। वर्कर हूं मुझे जो हुकम होगा सेहत के ऐतेबार से और अपनी परेशानियों और अपने मुकदमांत और अपनी सेहत को देखते हुए जो भी हुक्म होगा हाज़िर हूं मैं।

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विधानसभा का सत्र शुरू होने पर कहा कि कोशिश करूंगा उसमे मौजूद रहने की क्योंकि यहां अदालतों में इतने ज्यादा मेरे और मेरे करीबियों मेरे वर्करो पर हजारों की तादाद में मुकदमे हैं उनके लिए मुझे यहां रहना होगा मेरी तबीयत भी अच्छी नहीं है इलाज के लिए रामपुर से बाहर जाना होगा फिर भी जो हुकुम होगा वर्कर को जो करना चाहिए मैं कोशिश करूंगा।

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