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सुख हो या दुख महात्मा अपने शिष्यों को सच्ची भक्ती का देते है उपदेश

Preaching of true devotion

सच्ची भक्ती का उपदेश

लाइफ़स्टाइल डेस्क। एक आश्रम में एक महात्मा अपने शिष्यों को सच्ची भक्ती के बारे में उपदेश दे रहे थे। एक शिष्य को कुछ समझ नहीं आया तो महात्मा ने शिष्य को एक प्रसंग सुनाया। महात्मा ने बताया कि वनवास के दौरान एक बार भगवान राम और लक्ष्मण सरोवर में स्नान के लिए उतरे। उतरते समय उन्होंने अपने-अपने धनुष बाहर तट पर गाड़ दिए जब वे स्नान करके बाहर निकले तो लक्ष्मण ने देखा की उनकी धनुष की नोक पर रक्त लगा हुआ था! उन्होंने भगवान राम से कहा, भ्राता! लगता है कि अनजाने में कोई हिंसा हो गई। दोनों ने मिट्टी हटाकर देखा तो पता चला कि वहां एक मेंढक मरणासन्न पड़ा है।

भगवान राम ने करुणावश मेंढक से कहा, तुमने आवाज क्यों नहीं दी? कुछ हलचल, छटपटाहट तो करनी थी। हम लोग तुम्हें बचा लेते जब सांप पकड़ता है तब तुम खूब आवाज लगाते हो। धनुष लगा तो क्यों नहीं बोले?

मेंढक बोला,  प्रभु! जब सांप पकड़ता है तब मैं  ‘राम- राम’ चिल्लाता हूं एक आशा और विश्वास रहता है, प्रभु अवश्य पुकार सुनेंगे। पर आज देखा कि साक्षात भगवान श्री राम स्वयं धनुष लगा रहे हैं तो किसे पुकारता? आपके सिवा किसी का नाम याद नहीं आया, बस इसे अपना सौभाग्य मानकर चुपचाप सहता रहा।

सच्चे भक्त जीवन के हर क्षण को भगवान का आशीर्वाद मानकर उसे स्वीकार करते हैं। ऐसा नहीं कि दुख आने पर भगवान से शिकायते शुरू कर दें। सुख और दुख प्रभु की ही कृपा और कोप का परिणाम ही तो हैं।

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