दुनिया में सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट सेक्टर एक बड़ा नाम है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस अरबों की कंपनी के फाउंडर और सीईओ श्रीधर वेम्बू इंडस्ट्री में एक बड़ा नाम बन चुके हैं। ये एक मामूली इंसान का बेटा है जो हाईकोर्ट में स्टेनोग्राफर रहे पिता का एक बेटा, जिसने संघर्ष किया, विदेश में पढ़ाई की, प्राइवेट जॉब की, फिर मन नहीं लगा तो जॉब छोड़ स्वदेश लौट आए, यहां अपनी इंडस्ट्री खड़ी की और धारा के उलट चलते हुए एक मुकाम हासिल किया।
हम सब जानते हैं कि लोग गांव से शहर और फिर शहर से विदेश जाते हैं, नौकरी करते हैं चाहे अपना काम करते हैं, अपनी कंपनी खड़ी करते हैं। लेकिन श्रीधर ने इस धारा को पलट दिया। वे अमेरिका से गांव लौटे। आज वे गांव से ही अपनी अरबों की कंपनी चला रहे हैं।
बचपन से था लाल जर्सी पहनने का शौक आज है इस बड़ी टीम का प्लेयर
कंपनी का मुख्यालय चेन्नई में है, लेकिन वहां से करीब 630 किलोमीटर दूर तेनकासी के पास माथलमपराई नाम के छोटे से गांव में कंपनी का सेटेलाइट ऑफिस है, जहां वे सामुदायिक विकास के जरिये ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल रहे हैं 72वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर श्रीधर वेम्बू को पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है। हो गए न रोमांचित?
चेन्नई से इतनी दूर छोटे से गांव में लौटने की कहानी
जोहो कंपनी का मुख्यालय चेन्नई में है, लेकिन तेनकासी जैसे छोटे गांव में सेटेलाइट ऑफिस खोलने का फैसला औरों के लिए चकित कर देने वाला है।
इस बारे में योर स्टोरी को दिए गए एक इंटरव्यू में श्रीधर बताते हैं कि जब कंपनी में चेन्नई से बाहर के कर्मियों की बहाली हुई, तब विचार आया। हम गांव से शहर की ओर होने वाले माइग्रेशन के ट्रेंड को बदलना चाहते थे। हमें पश्चिमी तटीय क्षेत्र में करीब एक लाख की आबादी वाले ऐसे गांव की तलाश थी, जहां मूलभूत सुविधाएं हों।
कोरोना को मात देकर लौट आया दिल्ली का ये धुरन्धर खिलाडी
आगे वे बताते हैं, तेनकासी एक सुंदर जगह दिखी. यहां किराये पर छोटा-सा ऑफिस लिया और फिर पास के माथलमपराई गांव में एक पुरानी फैक्ट्री खरीद कर उसे परिसर में बदल दिया। आज, हमारे पास तेनकासी में करीब 500 कर्मचारी कार्यरत हैं।
बदल दी ग्रामीण भारत की तस्वीर
श्रीधर ने यहां हाई स्कूल और डिप्लोमा छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए जोहो स्कूल ऑफ लर्निंग की भी शुरुआत की। यहां वे खुद भी पढ़ाने जाते हैं। सामुदायिक विकास में उनकी किस कदर भूमिका रही है, इसे चेन्नई स्थित इकोनॉमिक्स कंसल्टिंग ग्रुप के अध्ययन से समझा जा सकता है। इस स्टडी में तेनकासी में कई क्षेत्रों में पॉजिटिव इम्पैक्ट का पता चला है। इनमें ओवरऑल इनकम, महिला सशक्तीकरण, एजुकेशन, स्किल डेवलपमेंट, रोजगार और सामुदायिक विकास आदि शामिल है।
जिला का दर्जा दिलाने में अहम भूमिका
सोचकर ही देखिए न, गांव में प्रतिभाओं की कमी नहीं होती, लेकिन यहां रोजगार के अवसर नहीं होते। ऐसे में युवा शहर की ओर पलायन करते हैं। श्रीधर की कंपनी जोहो ने इसी ट्रेंड को पलट दिया. स्थानीय जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों के मुताबिक, तेनकासी को जिला का दर्जा दिलाने में जोहो कंपनी का अहम रौल रहा है।
कंपनी ने अपने कर्मियों के लिए आवास सुविधाएं दी। यहां कंपनी के कर्मियों ने खेती में भी निवेश करना शुरू किया है। जोहो द्वारा खेती की पहल स्थानीय किसानों के बीच जैविक खेती के बारे में जागरूकता पैदा कर रही है। पंचायत में वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन भी होने लगा है
सपा संस्थापक सदस्य राममूर्ति वर्मा का निधन, अखिलेश यादव ने जताया दुख
अमेरिका की नौकरी छोड़ स्वदेश लौटे, कंपनी खोली
वर्ष 1994 में उन्होंने सैन डिएगो स्थित क्वालकॉम कंपनी में नौकरी शुरू की। 2 साल काम किया, मन नहीं लगा। जॉब छोड़ भारत लौट आए। अपना कुछ करना था। वर्ष 1996 में एक छोटे से अपार्टमेंट में टोनी थॉमस के साथ मिलकर सॉफ्टवेयर वेंचर एडवेंट नेट नाम से स्टार्टअप शुरू किया। वर्ष 2009 में उन्होंने अपनी कंपनी का नाम बदलकर जोहो (Zoho) रख दिया।
बड़ी कंपनी ने की खरीदने की कोशिश, दिया जवाब
योर स्टोरी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि एक बार अमेरिका के जाने-माने सेल्सफोर्स के फाउंडर मार्क बेनिऑफ ने उन्हें धमका कर ZOHO को खरीदने की कोशिश की थी। मार्क ने उनसे कहा था कि ‘गूगल एक दानव है और इसके साथ आप मुकाबला नहीं कर सकते।’ इस बात पर श्रीधर ने सहजता के साथ जवाब दिया था कि ‘गूगल से डरने की जरूरत उसे है, ZOHO को जिंदा रहने के लिए तो बस सेल्फसोर्स से अच्छा करने की जरूरत है।’ अपने इस स्टार्टअप को वे ऊंचाइयों पर ले जाना चाहते थे। सो उन्होंने क्रांतिकारी फैसले लिए. उतार-चढ़ाव के दौर से गुजरे, लेकिन कंपनी को इंडस्ट्री में स्थापित कर लिया।