सियाराम पांडेय ‘शांत’
जिंदगी अंतहीन परीक्षा है। इसका एक क्षण भी ऐसा नहीं जिसमें परीक्षा न होती हो। व्यक्ति जब तक जीता है, कोई न कोई परीक्षा देता ही रहता है। परिवार की परीक्षा, समाज की परीक्षा। संबंधों की परीक्षा। प्रेम की परीक्षा, घृणा की परीक्षा। एक दूसरे से आगे बढ़ने की परीक्षा, दूसरों की प्रगति से कुढ़ने और जलने की परीक्षा। सहयोग देकर किसी को आगे बढ़ाने की परीक्षा और किसी का पैर खींचने की परीक्षा। बचपन की परीक्षा, किशोर वय की परीक्षा, युवावस्था की परीक्षा और मृत्यु की परीक्षा। हर व्यक्ति की परीक्षा अलग होती है। हर किसी के सवाल अलग होते हैं। जवाब तलाशने पड़ते हैं। समस्याओं के समाधान ढूंढ़ने होते हैं।
जिंदगी टुकड़े-टुकड़ें में बंटा आनंद है। टुकड़े-टुकड़े में बंटा दुख है। यहां स्थायी भाव है ही नहीं। पल में तोला-पल में मासा वाली स्थिति है। जिंदगी सुख और दुख का समाहार है। जिंदगी उत्थान और पतन का नदी सागर-पठार है। व्यक्ति चाहकर भी परीक्षा से मुंह नहीं मोड़ सकता। जो परीक्षा से भागता है, वह जिंदगी की दौड़ में पिछड़ जाता है। अपनी संभावनाओं के दरवाजे अपने हाथ से बंद कर लेता है। जिंदगी तो पंचतत्वों का विलास और प्रकाश भर है। पंच तत्वों का संतुलन है। संतुलन बिगड़ा और समस्या शुरू। जिंदगी जल है। पवन है। पृथ्वी है। आग है। आकाश है। इसमें एक भी तत्व ऐसा नहीं जो रोज विप्लव न झेलते हो। प्रकृति में रोज उपद्रव होते रहते हैं लेकिन इससे प्रकृति के काम अवरुद्ध नहीं होते फिर हम मानव समाज के लोग परेशानियों का हल्का झोंका आते ही विचलित क्यों हो जाते हैं?
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मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा जेईई मेन्स को लेकर देश भर में घमासान मचा हुआ है ,लेकिन विचार तो इस बात का होना चाहिए कि इससे किसकी सेहत सुधरेगी और कितनी? घर में बैठकर हम कोरोना से बचने का प्रयास तो कर लेंगे जो उचित भी है और अपरिहार्य भी लेकिन गरीबी, अभाव और बेरोजगारी का समाधान निठल्लापन कैसे हो सकता है?
गैर भाजपा शासित सात राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा आयोजित वर्चुअल मीटिंग में इस घोर कोरोना काल में नीट और जेईई परीक्षा न कराने की मांग की है। इसे रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करने की बात कही है। इन परीक्षाओं के विरोध में 28 अगस्त को कांग्रेस देश व्यापी आंदोलन करने वाली है। विपक्ष का तर्क है कि कोरोना काल में जब देश भर में संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। देश के अधिकांश राज्यों में बाढ़ के हालात हैं, ऐसे में इन परीक्षाओं को स्थगित कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह परीक्षार्थियों के स्वास्थ्य से जुड़ा सवाल है। छात्र भी नहीं चाहते कि यह परीक्षा कराई जाए। कुछ छात्र इसका विरोध भी कर रहे हैं लेकिन यह छात्र हैं कौन और कितनी संख्या में हैं। विचार तो इस पर भी किया जाना चाहिए।
मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा जेईई मेन्स के लिए एक दिन में 14 लाख से अधिक परीक्षार्थियों द्वारा प्रवेश पत्र डाउनलोड किया जाना तो कुछ और ही संकेत देता है। विपक्ष के नेताओं का तर्क हो सकता है कि प्रवेश पत्र डाडनलोड करना तो छात्र-छात्राओं की मजबूरी हो सकती है लेकिन ज्यादातर छात्र परीक्षा नहीं देना चाहते होंगे। इस विषय पर सत्तापक्ष और विपक्ष के अपने-अपने तर्क हो सकते हैं लेकिन राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी अगर 99 प्रतिशत उम्मीदवारों को उनकी प्रथम पसंद के परीक्षा केंद्र वाले शहर आवंटित करने की बात कर रही है। तो परेशानी की बात क्या है। नीट और जेईई मेन्स की परीक्षा में अभी 15—16 दिन का समय है। जिस तरह कोरोना से ठीक होने वालों की दर बढ़ रही है,उसे देखते हुए धैर्य और संयम तो बनाया ही जाना चाहिए। राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी की मानें तो अभी तक उससे केवल 332 छात्रों ने परीक्षा केंद्र बदलने का आग्रह किया है और उस पर सकारात्मक ढंग से विचार किया जा रहा है।
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शिक्षा मंत्रालय ने जोर दिया है कि परीक्षाएं निर्धारित समय पर ही सितंबर में होंगी। राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी का वादा है कि वह परीक्षा केंद्रों की संख्या बढ़ाने, एक सीट छोड़कर बैठाने, प्रत्येक कमरे में कम परीक्षार्थियों को बैठाने और प्रवेश-निकास की अलग व्यवस्था जैसे कदम उठाएगी। जेईई के लिए परीक्षा केंद्रों की संख्या 570 से बढ़ाकर 660 की गई है जबकि नीट अब 2,546 केंद्रों के बजाय 3,843 केंद्रों पर होगी। जेईई-मुख्य परीक्षा के लिए पालियों की संख्या आठ से बढ़ाकर 12 कर दी गई है और प्रत्येक पाली में विद्यार्थियों की संख्या अब 1.32 लाख से घटकर 85 हजार हो गई है। सामाजिक दूरी का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए जेईई-मुख्य परीक्षा में छात्रों को परीक्षा कक्ष में एक सीट छोड़कर बैठाया जाना है जबकि नीट में एक कमरे में विद्यार्थियों की संख्या 24 से घटाकर 12 कर दी गई है। मतलब राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी खुद कोरोना संक्रमण को लेकर गंभीर है तो विपक्ष इस मुद्दे को अनावश्यक विवाद का विषय क्यों बना रहा है?
कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, द्रमुक प्रमुख एमके स्टालिन और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया सहित कई विपक्षी नेताओं ने भी परीक्षा स्थगित करने की मांग की है।हालांकि, कोविड-19 की वजह से परीक्षा स्थगित करने का निर्देश देने के लिए दायर याचिका को पिछले हफ्ते उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ डिजिटल बैठक में पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने यह भी कहा कि इन परीक्षाओं को रोकने के लिए राज्यों को उच्चतम न्यायालय का रुख करना चाहिए।
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झारखंड के मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन की राय है कि न्यायालय जाने से पहले मुख्यमंत्रियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर परीक्षाओं को टालने की मांग करनी चाहिए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने सवाल किया कि आज कोरोना वायरस का संक्रमण फैल रहा है और संकट बढ़ गया है तो परीक्षाएं कैसे ली जा सकती हैं?
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायणसामी ने भी इन परीक्षाओं को स्थगित करने की पैरवी की और केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ न्यायालय का रुख करने के विचार से सहमति जताई है।
दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने नीट और जेईई की परीक्षाएं स्थगित करने की मांग करते हुए केन्द्र सरकार से छात्रों के चयन के लिये वैकल्पिक पद्धति पर काम करने का अनुरोध किया। उनका तर्क है कि जब तमाम ऐहतियाती कदम उठाने के बावजूद बहुत सारे शीर्ष नेता संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। ऐसे में हम 28 लाख छात्रों को परीक्षा केन्द्र भेजने का जोखिम कैसे उठा सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे इसकी चपेट में नहीं आएंगे।
सवाल यह है कि ये वही नेता है जो कोरोना काल में मेट्रो को खोलने की मांग कर रहे हैं। कारोबारी गतिविधियों को शुरू करने की मांग करते रहे हैं। इस बात का रोना रोते रहे हैं कि उनकी अर्थव्यवस्था बिगड़ रही है। लोग बड़ी तादाद में बेरोजगार हो गए हैं लेकिन क्या उन्होंने सोचा है कि अगर परीक्षाएं नहीं होगी तो क्या होगा? इन परीक्षाओं के लिए तैयारी करने वाले छात्रों और उनके कोचिंग और रहवास पर लाखों रुपये खर्च करने वाले अभिभावकों के दिल पर क्या बीतेगी?
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उन छात्रों का एक साल खराब हो जाएगा और अगले साल इस परीक्षा के लिए उन्हें दोगुनी अभ्यर्थी संख्या की चुनौती को भी झेलना होगा। परीक्षा के बिना चयन एक विकल्प हो सकता है लेकिन इससे अयोग्यता को बढ़ावा मिलेगा। परीक्षा कोई भी हो वह योग्यता का निर्धारण करती है। परीक्षा से वंचित अभ्यर्थी उसके अनुभवों से वंचित हो जाएंगे। ऐसे में वे जीवन की परीक्षा में किस तरह पास होंगे। विचार तो इस पर होना चाहिए।
राजनीति के लिए देश में विषयों की कमी है। परीक्षा को राजनीति का विषय न बनाएं। छात्र देश के भविष्य हैं और उनका भविष्य परीक्षा देने में ही है। इसलिए कोई भी परीक्षा किसी रूप में रोकी नहीं जानी चाहिए। राजनीतिक दलों को भी सोचना होगा कि वे आखिर किस तरह की राजनीति कर रहे हैं। वे इस देश को आगे ले जाना चाहते हैं या सदियों पीछे। समर्थन और विरोध भी एक परीक्षा है। जब राजनीति का पहिया नहीं थम रहा है तो परीक्षा का चक्र क्यों स्तंभित हो। जब तक इस युगसत्य पर विचार नहीं किया जाएगा तब तक भारत की समस्याओं का सिलसिला नहीं थमेगा।