वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) रखने और वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इस वर्ष वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) 30 मई को ज्येष्ठ अमावस्या तिथि को है. वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) में सुहागन महिलाए बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और उसमें कच्चा सूत लपेटती हैं. अब प्रश्न यह है कि वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा क्यों करते हैं. इस प्रश्न का जवाब जानते हैं श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी से.
वट सावित्री व्रत (Vat Savitri) मुहूर्त
ज्येष्ठ अमावस्या की शुरुआत: 29 मई, रविवार, दोपहर 02:54 बजे
ज्येष्ठ अमावस्या की समाप्ति: 30 मई, सोमवार, शाम 04:59 बजे
सर्वार्थ सिद्धि योग: प्रात: 07:12 बजे से प्रारंभ
सुकर्मा योग: प्रात: काल से प्रारंभ
बरगद के पेड़ की पूजा क्यों करते हैं
1. ज्येष्ठ आमवस्या यानी वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) के दिन वट वृक्ष की पूजा इसलिए करते हैं, ताकि सुहागन महिलाओं को अखंड सौभाग्य एवं सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद प्राप्त हो. पति की उम्र लंबी हो.
2. पौराणिक कथाओं के अनुसार, सावित्री वट वृक्ष के नीचे ही अपने मृत पति के प्राण वापस लाई थीं. उन्होंने अपने पतिव्रता धर्म से यमराज को प्रसन्न कर आशीर्वाद प्राप्त किया था. इस वजह से महिलाएं ज्येष्ठ अमावस्य को वट वृक्ष की पूजा करती हैं.
3. संतान प्राप्ति के लिए भी वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) वाले दिन बरगद के पेड़ की पूजा करते हैं. सावित्री ने यमराज से 100 पुत्रों की माता होने का वरदान मांगा था. यमराज ने उनको वरदान दे दिया, जिसकी वजह से सत्यवान के प्राण भी उनको लौटाने पड़े थे क्योंकि बिना सत्यवान के रहते सावित्री 100 पुत्रों की माता नहीं बन सकती थीं.
4. बरगद का वृक्ष विशाल होता है, उसकी शाखाओं से जटाएं निकली हुई होती हैं. ऐसी मान्यता है कि उन जटाओं से सावित्री का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस वजह से वट सावित्री व्रत के दिन बरगद के पेड़ की पूजा करते हैं.
5. बरगद के पेड़ में देवी देवताओं का वास होता है. बरगद की जड़ में ब्रह्मा जी, छाल में भगवान विष्णु और शाखाओं में भगवान शिव का वास मानते हैं. इस वजह से बरगद के पेड़ की पूजा करते हैं और एक साथ त्रिदेव का आशीष प्राप्त करते हैं.
6. त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम को जब वनवास हुआ था, तो वे तीर्थराज प्रयाग में भारद्वाज ऋषि के आश्रम में गए थे. वहां पर उन्होंने भी वट वृक्ष की पूजा की थी. बरगद के पेड़ को अक्षयवट भी कहा जाता है.