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क्यों जरुरी होता है स्त्रियों के लिए सोलह श्रृंगार, जानें जरूर

Writer D by Writer D
08/09/2021
in Main Slider, ख़ास खबर, फैशन/शैली
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Sawan

solah-shringar

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स्त्रियो के सोलह श्रृंगार करना बहुत आवश्यक होता है। सोलह श्रृंगार स्त्रियों के सोन्दर्य को परिपूर्णता लाता है। आपको शायद ये बात जानकर हैरानी होगी की सोलह श्रृंगार सोन्दर्य बल्कि घर मे सुख समृधि भी लाता है। श्रृंगार पवित्रता के साथ किया जाये तो यह प्यार से समाज मे सोम्यता और अहिंसा का प्रतीक बनता है। तभी तो भारतीय संस्क्रति मे सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व होता है। शास्त्रों मे भी सोलह श्रृंगार को सौभाग्य के लिए जरुरी बताया है। आइये जानते है स्त्रियों को करने के पीछे के कारण …..

पहला श्रृंगार बिंदी

संस्क्रत भाषा के बिंदु शब्द से बिंदी शब्द की उत्पत्ति हुई है। दोनों भोंहो के बीच मे बिंदी लगाना जरुरी होता है। ऐसा मानते है की बिंदी भोंहो के बीचे मे लगाना भगवान शिव की के तीसरे नेत्र का प्रतीक होती है। सुहागन के लिए बिंदी लगाना घर की सुख समृधि के लिए जरुरी होता है।

दूसरा श्रृंगार सिंदुर

भारतीय संस्क्रति मे सिंदुर का बहुत महत्व है क्यों की सिंदुर सुहाग की लम्बी उम्र के लिये लगाया जाता है। शादी के समय पति द्वारा पत्नी की मांग मे सिंदुर लगाकर जिन्दगी भर साथ निभाने का वचन देता है। और यह भी माना जाता है की जितना ज्यादा स्त्री मांग मे लम्बा सिंदुर लगाएगी उतनी ही पति की उम्र लम्बी होगी।

तीसरा श्रृंगार काजल

काजल आँखों मे लगाया जाने वाला श्रृंगार है जो स्त्री की आँखों को सुन्दर बनाता है। काजल लगाने से दुल्हन और उसके परिवार को बुरी नजर से बचाता है।

चोथा श्रृंगार मेहंदी

मेहंदी एक ऐसा श्रृंगार है जो सुहागन हो या कंवारी कन्या दोनों ही इसे लगा सकते है। ऐसा मानते है की शादी के समय जितनी अधिक मेहँदी गहरी होगी उसका पति उससे उतना ही प्यार करता है।

पाचंवा श्रृंगार शादी का जोड़ा

उत्तर भारत मे शादी के वक्त दुल्हन को जरी के काम से सज्जित लाल रंग का जोड़ा पहनाया जाता है। बिहार मे भी दुल्हन को लाल पीले रंग का जोड़ा पहनना शुभ मानते है। ऐसे जोड़े को पहनने से स्त्री की सुंदरता और अधिक बढ़ जाती है।

छठा श्रृंगार गजरा

यह दुल्हन जुड़े मे लगाया जाता है क्यों की इसमें सुंगधित खुश्बू आती है जो स्त्री को और भी अधिक आकर्षित बनाता है।

सातवा श्रृंगार मांग टीका

मांग के बीचो बीच पहना जाता है। जो की वधु की सुन्दरता को मे चार चाँद लगाता है। ऐसा मानते है की मांग टीका मांग मे बीचो बीच इसलिए पहनते है की वधु शादी के बाद अपने जीवन मे सही और सीधे रस्ते पर चले।

आठंवा श्रृंगार नथ

शादी के अवसर मे अग्नि के चारो और सात फेरे लेने के बाद देवी पार्वती को सम्मानित करते हुए नथ पहनाई जाती है। ऐसा मानते है की इससे पति के स्वास्थ्य और धन- धान्य मे वृद्धि होती है।

नवा श्रृंगार कानो के बुँदे

शादी के बाद कानो मे बुँदे पहनना जरूरी होता है। ऐसा मानते ही की इससे बहु को दुसरो से और खास कर पति से और ससुराल वालो की बुराई करने और सुनने से बचना होता है।

दसवा श्रृंगार हार

गले मे पहना जाने वाला सोने या मोती का हो सकता है। इसको पहनने के पीछे कारण है की यह स्त्री को अपने पति के प्रति वचनबद्धता का प्रतिक मानते है।

ग्यारहवा श्रृंगार बाजूबंद

यह कड़े के आकर का होता है। यह बाहों मे पहना जाता है। ऐसा मानते है की इसको पहनने से परिवार मे कभी भी धन की कमी नहीं होती है और धन की रक्षा करता है।

बारहवा श्रृंगार कंगन और कड़े

प्राचीन काल से ही कंगनो को पहनना सुहाग का प्रतिक मानते है। हिन्दू परिवार मे सास द्वारा नयी बहु को वही कंगन दिए जाते है जो सास ने अपनी सास से प्राप्त किये थे और इससे सदा सुहागन बने रहने का आशीर्वाद मिलता है।

तेरहवा श्रृंगार अंगुठी

शादी से पहले सगाई की रस्म मे अंगुठी का वर वधु को एक दूसरे को पहनना आपसी प्यार का प्रतिक माना जाता है। अंगुठी को पहनाने से पति पत्नी के बीच मे विश्वास बना रहता है।

चौदहवा श्रृंगार कमरबंद

कमरबंद कमर मे पहने जाने वाला आभूषण है जिसमे स्त्री चाबियों का गुच्छा अपनी कमर मे बांध लेती है जो इस बात का प्रतिक है की सुहागन स्त्री अब अपने घर की स्वामिनी बन गयी है।

पंद्रहवा श्रृंगार बिछुए

बिछुए पेरो की अंगुली मे पहना जाता है। पारम्परिक रूप से इसमें शीशा लगा होता है पहले जब स्त्री ससुराल मे अपने पति के भी सामने शर्माती थी तो वह अपने पति को नजर झुकाकर पति की शक्ल को बिछुए मे देख लिया करती थी।

सोलहवा श्रृंगार पायल

यह भी पेरो मे पहना जाता है। पुराने समय मे जब वधु पायलो की मधुर आवाज़ से घर से बाहर निकला करती थी तो बड़े बूढ़े उसके रस्ते से हट जाया करते थे।

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