आज दशहरा (Dussehra) पर्व को मनाया जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार, यह पर्व हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन मनाया जाता है। दशहरे (Dussehra) के दिन रावण दहन और शस्त्र पूजा के साथ साथ शमी (Shami) के पेड़ की भी पूजा की जाती है। भगवान श्रीराम ने आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन लंकापति रावण का वध किया था। इसलिए इस दिन रावण का पुतला फूंका जाता है।
वहीं इस पावन तिथि के दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इसलिए इस दिन शस्त्रों की पूजा का विधान है। विजय दशमी के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने के पीछे पौराणिक महत्व है।
संस्कृत में अग्नि को शमी गर्भ के नाम से जाना जाता है। कहते हैं महाभारत काल में पांडवों ने शमी के पेड़ के ऊपर अपने अस्त्र शस्त्र छिपाए थे। जिसके बाद उन्हें कौरवों से जीत प्राप्त हुई थी। विजयादशमी के दिन प्रदोषकाल में शमी वृक्ष का पूजन अवश्य किया जाना चाहिए। विजयदशमी के मौके पर कार्य सिद्धि का पूजन विजय काल में फलदायी रहेगा।
इस दौरान प्रार्थना कर शमी वृक्ष की कुछ पत्तियां तोड़े और उन्हें घर के पूजाघर में रख दें। लाल कपड़े में अक्षत, एक सुपाड़ी के साथ इन पत्तियों को बांध लें। इसके बाद इस पोटली को गुरु या बुजुर्ग से प्राप्त करें और प्रभु राम की परिक्रमा करें।
विजयदशमी के दिन नीलकंठ के दर्शन शुभ होते हैं। दशहरे पर अशमंतक अर्थात कचनार का वृक्ष लगाने का विशेष महत्व है। इसकी नियमित पूजा से परिवार में सुख-शांति आती है। विजयदशमी पर अपराजिता के पूजन का भी महत्व है। आत्मविश्वास की कमी होने पर अपराजिता की पत्तियों को हल्दी से रंगे, दूर्वा और सरसों को मिलाकर एक डोरा बना लें और उस डोरे को दाहिने हाथ में बांध लें। इससे आत्मविश्वास बढ़ता है।
विजयादशमी के दिन प्रदोषकाल में शमी वृक्ष के समीप जाकर उसे प्रणाम करें। पूजन के उपरांत हाथ जोड़कर निम्न प्रार्थना करें-
‘शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।’