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जिंदगी को मात देती शराब

Desk by Desk
21/11/2020
in Main Slider, उत्तर प्रदेश, ख़ास खबर, नई दिल्ली, राष्ट्रीय, लखनऊ, स्वास्थ्य
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जिंदगी को मात देती शराब Wine beats life

जिंदगी को मात देती शराब

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सियाराम पांडेय ‘शांत’

लखनऊ, फिरोजाबाद, हापुड़, मथुरा,आगरा, बागपत और मेरठ में जहरीली शराब के तांडव के बाद अब प्रयागराज जिले के फूलपुर थाना क्षेत्र के चार गांवों के छह लोग जहरीली शराब के सेवन से असमय काल कवलित हो गए। इस घटना के बाद हरकत में आए प्रशासन ने एक ही संचालक के तीन शराब ठेकों को सील कर दिया और एक शराब विक्रेता को हिरासत में ले लिया।

फूलपुर थाना क्षेत्र में नवंबर माह की शुरुआत में ही एक व्यक्ति की मौत जहरीली शराब पीने की वजह से हुई थी। अगर प्रयागराग जिला और पुलिस प्रशासन उसीवक्त गंभीर हुआ होता तो एक साथ छह लोगों की मौत का मातम न मनाना पड़ता। जहरीली शराब से मौत का यह सिलसिला पहला और अंतिम नहीं है।

देश और प्रदेश में जहरीली शराब से लोगों के मरने और गंभीर रूप से अस्पतालों में भर्ती होने की खबरें अखबारों में छपती रहती है। टीवी चैनलों की सुर्खियां बनती रहती है। सरकारें मृतकों के परिजनों को 2 लाख और गंभीर रूप से बीमार हुए शराब पीड़ितों को 50 हजार का मुआवजा देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेती है। वह दावे तो खूब करती है कि जहरीली शराब के कारोबारियों को बख्शा नहीं जाएगा। कुछ दिन उसकी सक्रियता दिखती भी है और फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है। नशे के कारोबारी अपने लाभ के लिए मौत का खेल खेलते रहते हैं।

प्रयागराज की घटना के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश के लगभग सभी जिलों में शराब कारोबारियों पर शिंकजा कसा जाने लगा है। शराब दुकान के लाइसेंसियों को गिरपफ्तार कियाजाने लगा है। सवाल यह उठतमा है कि इससे पूर्व जिला और पुलिस प्रशासन क्या करता है जो उसे किसी बड़ी हृदयविदारक घटना के बाद ही जहरीली और मिलावटी शराब के कारोबारियों पर अंकुश लगाने की सुध आती है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नकली शराब बेचने वालों पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई किए जाने के निर्देश दिए हैं। उनके इस निर्णय का स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन शराब से होने वाली जनहानि पर उनके आक्रोश का जायजा इस बात से भी लिया जाना चाहिए कि इसी मुद्दे पर उन्होंने लखनऊ के पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय को आधी रात हटा दिया था और उनकी जगह रातों—रात ध्रुवकांत ठाकुर ने कार्यभार संभाल लिया था। उनके कार्यभार संभाले दो दिन भी नहीं बीते हैं कि प्रयागराज जिले के फूलपुर थाना क्षेत्र में यह बड़ी घटना हो गई।

लखनऊ और फिरोजाबाद के आबकारी अधिकारियों को हटाने के साथ ही पिछले दिनों लखनऊ पुलिस कमिश्नर पर भी गाज गिरी थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रयागराज की घटना के बाद सख्त तेवर अख्तियार कर लिए हैं। उन्होंने निर्देश दिया है कि जहरीली शराब बेचने वालों पर प्रशासन गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की जाए। दोषी पाए जाने पर उनकी संपत्ति जब्त की जाए और बाद में उसे नीलाम कर पीड़ितों को मुआवजा दिया जाए।

जुलाई, 2019 में यूपी कैबिनेट में आबकारी नीति 2019-20 में संशोधन का प्रस्ताव पास हुआ था जिसमें न केवल प्रदेश के शराब माफियाओं के खिलाफ कड़े कदम उठाने की इच्छा जाहिर की गई थी बल्कि आबकारी नीति में भी बड़े बदलाव किए गए थे। ओवररेटिंग की शिकायत मिलने पर जुर्माने में साढ़े सात गुना बढ़ोत्तरी की गई थी।

पहली शिकायत पर 75 हजार रुपये, दूसरी बार डेढ़ लाख रुपये और तीसरी शिकायत पर लाइसेंस निरस्तीकरण की कार्रवाई करने का सख्त प्रावधान किया गया था। जहरीली शराब के मामलों को देखते हुए शराब में मिलावट पाए जाने पर पहली बार में ही रिटेल और हॉलसेल की दुकानों के लाइसेंस निरस्त करने का प्रावधान तो इसमें था ही,मिलावट के आरोपियों पर गैंगेस्टर और एनएसए के तहत कार्रवाई करने का भी प्रावधान किया गया था। जहरीली शराब से मौत होने पर मिलावटी शराब बनाने वाले माफियाओं पर आईपीसी की धारा 304 के तहत गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज करने का भी सख्त प्रावधान इस नए संशोधन में किया था, लेकिल केवल कानून बनाने से ही किसी समस्या का समाधान नहीं हो जाता।

यह सब इस बात परनिर्भर करता है कि कानून का क्रियान्वयन करने वालों की नीयत कैसी रही है। उन्होंने ईमानदारी से अपने दायित्व का निर्वहन किया भी या नहीं। अगर अधिकारियों ने वर्ष 2019 में हुए आबकारी नियम संशोधन कानून पर ही अमल किया होता तो बार-बार प्रदेश में शराब से जनहानि की नौबत न आती और मुख्यमंत्री को एक ही निर्देश अनेक बार न देने पड़ते।

गौरतलब है कि सरकारी आंकड़ों के तहत वर्ष 2017 यानी योगी सरकार के एक साल में ही 117 से अधिक लोगों की उत्तर प्रदेश में विषाक्त मदिरा पीने से मौत हुई थी। साल दर साल जिस तरह जहरीली शराब से मरने वालों की संख्या का ग्राफ बढ़ रहा है, उसे बहुत हल्के में नहीं लिया जा सकता। योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद 2017 में आजमगढ़ जिले में जहरीली शराब से 7 लोगों की मौत हुई थी।

वर्ष 2018 में बाराबंकी जिले में 11, गाजियाबाद में 3, कानपुर नगर में 5, कानपुर देहात में 4, बिजनौर में 1 और शामली जिले में 5 लोग जहरीली शराब की भेंट चढ़ गए थे। वर्ष 2019 में कुशीनगर जिले में 11, सहारनपुर में 46, कानपुर नगर में 10 और बाराबंकी जिले में 24 लोगों की मौत विषाक्त मदिरा के चलते हुई थी। कुशीनगर और सहारनपुर शराब मामले में मुख्यमंत्री की सख्ती पर पुलिस और आबकारी विभाग के चार इंस्पेक्टरों समेत 23 को निलंबित कर दिया गया था।

उत्तर प्रदेश में वर्षवार अगर हम जहरीली शराब से मरने वालों का आंकड़ा देखें तो 2008 में जहरीली शराब पीने से 16, साल 2009 में 53, साल 2010 में 62, साल 2011 में 13, साल 2012 में 18, साल 2013 में 52, साल 2014 में 5, साल 2015 में 59, साल 2016 में 41, साल 2017 में 18, साल 2018 में 17 लोगों की मौत हुई थी। 2009 में सहारनपुर में 32,वर्ष 2010 में वाराणसी में 20, साल 2013 में आजमगढ़ में 40, लखनऊ में साल 2016 में 36 और साल 2016 में एटा में 41 लोगों की जान गई थी। देश भर में जिन 12 हजार लोगों की 2005 से 2015 तक मौत हुई है उसमें सबसे ज्यादा पुरुष हैं।

उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ आदि अनेक राज्यों में जहरीली शराब से लोगों के मरने, अंधे और अपाहिज होने की खबरें आती रही हैं। इसी माह में उज्जैन में 19 और अगस्त माह में पंजाब के तरनतारन में 63,अमृतसर में 12 और गुरुदासपुर में 11 लोगों की जहरीली शराब से मौत हुई है। इसके बाद भी केंद्र और राज्य सरकार शराब बंदी को लेकर गंभीर नहीं है। उन्हें अपना लाभ नजर आ रहा है। उत्तर प्रदेश में तो जहरीली शराब से हो रही मौतों पर सियासत का बाजार भी गर्म हो गया है।

विपक्ष सरकार पर शराब माफिया को संरक्षण देने के आरोप लगाने लगा है। कोरोनो जन्य लॉकडाउन में शराब की बिक्री पूरी तरह प्रतिबंधित कर दी गई थी लेकिन बढ़ते दबाव के चलते योगी सरकार ने 20 अप्रैल, 2020 से पूरे प्रदेश में शराब की रिटेल बिक्री शुरू कर दी थी। शराब उत्पादन करने वाली कंपनियों को 20 अप्रैल से शराब और बीयर उत्पादन की अनुमति दी थी। एक दिन में ही प्रदेश सरकार के राजस्व संग्रह में भारी उछाल आया था। हालांकि बौद्धिक स्तर पर सरकार के इस निर्णय की आलोचना भी खूब हुई थी।

अखिलेश सरकार में उन्नाव और लखनऊ में जहरीली शराब पीने से 33 लोगों की मौत हो गई थी। उस वक्त भी कार्रवाई की बात कही गई थी। एक सर्वे का दावा है कि 10 वर्ष से लेकर 75 आयु वर्ग में देश का लगभग हर सातवां व्यक्ति शराब सेवन का आदी हो चुका है। डब्ल्यूएचओ समेत तमाम संगठनों ने भी शराब के सेवन को सर्वाधिक प्राणघातक द्रव्य माना है।

शराब और नशीले पदार्थों के सेवन से जहां बीमारी और अक्षमता का खतरा रहता है, तो वहीं परिवारों की तबाही और बच्चों के अंधकारमय भविष्य की चिंता सबसे बड़ी सामाजिक चुनौती है। विश्वभर में कुल शराब का 44.8 प्रतिशत स्पिरिट के रूप में, 34.3 प्रतिशत बीयर के रूप में और 11.7 प्रतिशत वाइन के रूप लिया जाता है ।

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वर्ष 2010 के बाद से दुनिया में पेय पदार्थ को वरीयता देने में मामूली बदलाव हुआ है। सबसे ज्यादा बदलाव यूरोप में हुआ है, यहां स्पिरिट की खपत में तीन प्रतिशत साल 2005 से 2016 के बीच भारत में प्रति व्यक्ति शराब की खपत दोगुनी हो गई। वर्ष 2005 में भारत में जहां प्रति व्यक्ति शराब की खपत 2.4 लीटर थी, वह 2010 में बढ़कर 4.3 लीटर और 2016 में 5.7 लीटर हो गयी। 11 साल में भारत में शराब का उपभोग दोगुने से अधिक हो गया।

दक्षिण-पूर्व एशिया में शराब की खपत में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज हो सकती है। वर्ष 2016 में वैश्विक स्तर पर कुछ 30 लाख लोगों की मृत्यु हुई, जिसमें पुरुषों की संख्या 23 लाख और महिलाओं की सात लाख थी। शराब के चलते लोग अनेक घातक बीमारियों के शिकार होते हैं। इनके इलाज पर सरकार को शराब बिक्री से होने वाली आय से कहीं अधिक खच्र करना पड़ता है। ऐसे में सरकार को सोचना होगा कि शराबबंदी से जितना नुकसान आंका जा रहा है, उतना है नहीं। देशवासी स्वस्थ रहें तो इससे बड़ा लाभ दूसरा कुछ भी नहीं हो सकता।

सरकार के सलाहकारों को भी सोचना होगा कि वह उसे समझाएं कि शराब बिक्री के तात्कालिक लाभ तो हो सकते हैं लेकिन इसके दूरगामी दुष्परिणाम उससे भी अधिक हैं। न केवल बीमारियों के रूप में वरन अपराध के रूप में भी। इसलिए अब भी समय है जब यह समझ लिया जाए कि नशे का उत्पादन, विपणन और सेवन किसी भी रूप में देश के लिए लाभकारी नहीं है।

Tags: Wine beats lifeउड़ीसाछत्तीसगढजिंदगी को मात देती शराबझारखंडडब्ल्यूएचओत्तर प्रदेशनशे का उत्पादनपश्चिम बंगालबिहारमध्यप्रदेशविपणनशराब माफिया को संरक्षण
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